बदहाली की दौर से गुजर रहा है विस्थापित गांव बिरसानगर,मूलभूत सुविधा का अभाव
1996 में वर्ल्ड बैंक की मदद से बसाए गए विस्थापित गांव बिरसानगर में मूलभूत सुविधाओं का अभाव हो गया है। सीसीएल प्रबंधन ने 2007 के बाद से गांव की देखरेख बंद कर दी, जिसके कारण नालियां, कुएं और सड़कें...

खलारी, निज प्रतिनिधि। साल 1996 में सीसीएल एनके एरिया के केडीएच परियोजना विस्तारीकरण के दौरान वर्ल्ड बैंक की मदद से बसाया गया विस्थापित गांव बिरसानगर आज बदहाली की दौर से गुजर रहा है। इस विस्थापित गांव में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव देखा जा रहा है। केडीएच खदान विस्तारीकरण को लेकर वर्ष 1996 में रोहनियांटांड को हटाया गया था। 52 घरों के इस गांव में 200 से अधिक की आबादी थी। सीसीएल प्रबंधन के द्वारा धमधमिया कॉलोनी के बगल में प्रति परिवार दो डिसमिल की दर से जमीन उपलब्ध करा कर विस्थापित गांव बिरसानगर को बसाया गया था। जिसमें सीसीएल के द्वारा सड़क, नाली, कुआं, स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था की गई थी। बिरसानगर गांव बसने के बाद लगभग 10 वर्षों तक गांव की देखभाल सीसीएल प्रबंधन के द्वारा किया जजा रहा था। लेकिन 10 वर्षों के बाद सीसीएल प्रबंधन ने इस गांव की ओर ध्यान देना बंद कर दिया है, जिसके कारण धीरे-धीरे इस विस्थापित गांव में बदहाली की शुरुआत हो गई और आज हालात यह है कि गांव के सभी नाली, कुआं, सड़क, स्ट्रीट लाइट पुरी तरह से जर्जर हो चुके हैं, जिसके कारण गांव में रहने वाले लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। विस्थापित गांव बिरसानगर में रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि साल 2007 के बाद से सीसीएल प्रबंधन के द्वारा विस्थापित परिवारों की कोई सुध नहीं ली गई। गांव में सीसीएल द्वारा बनाए गए सभी सड़क पूरी तरह से टूट चुके हैं। जमीन पर बनाया गया नाली तो अब दिखता ही नहीं है। घरों का पानी जमीन या सड़कों पर ही बेहतर रहता है। स्ट्रीट लाइट खराब हुए कई वर्ष बीत गए, लेकिन उसे भी बदल नहीं गया है। सीसीएल के द्वारा बनाया गया कुआं भी जर्जर हालत में है।
गांव में बनाया गया प्रशिक्षण केंद्र हुआ जर्जर: सीसीएल द्वारा विस्थापित गांव बिरसानगर बसान के बाद गांव में रहने वाले लोगों के रोजगार के लिए नि:शुल्क सिलाई- कढ़ाई और दरी बुनाई प्रशिक्षण केंद्र भी खोला गया था। गांव की महिलाएं और पुरुष प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण लेने के बाद काफी मात्रा में दरी की भी बुनाई करते थे। ग्रामीणों द्वारा बनाए गए दरी को सीसीएल के द्वारा ही बेचने की व्यवस्था की गई थी, जिससे दरी बनाने वाले लोगों को मजदूरी मिलती थी। ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे प्रशिक्षण की जिम्मेवारी जागृति विहार संस्था को मिला था। वर्ष 2007 में अचानक से यह पूरी व्यवस्था बंद हो गई, जिसके बाद देख- रेख के अभाव में सभी प्रशिक्षण केंद्र अब खंडहर में तब्दील हो गये है।
प्रबंधन की उपेक्षा से बदहाल हुआ विस्थापित गांव: बहुरा मुंडा
बिरसा नगर गांव में रहने वाले विस्थापित बहुरा मुंडा बताते हैं कि सीसीएल प्रबंधन की अपेक्षा के कारण यह विस्थापित गांव पूरी तरह से बदहाल हो चुका है। खदान चलने के लिए जब उन्हें जमीन की आवश्यकता थी तो कई तरह के सुख- सुविधाओं का सपना दिखाकर यहां बसाया गया था। कुछ दिन तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन अचानक से सीसीएल प्रबंधन ने इस विस्थापित गांव की ओर देखना ही बंद कर दिया। गांव की नाली- कुआं पुरी तरह से जर्जर हो चुके हैं। अब जब भी इसकी मरम्मत की बात प्रबंधन से की जाती है तो प्रबंधन फंड नहीं होने का हवाला देती है। सीसीएल में जब तक सीडी फंड चलता था तब तक गांव में कुछ ना कुछ मरम्मत का काम होते रहता था। सीएसआर और डीएमएफटी फंड से गांव में एक भी काम नहीं हुआ है। प्रबंधन विस्थापित लोगों से उनके सभी तरह के हक अधिकार छीन रही है, जिसका खामियाजा प्रबंधन को भुगतना पड़ेगा।
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