दुबले-पतले लोग भी हो सकते हैं दिल के मरीज, एक्सपर्ट से जानें किन बातों का रखें ध्यान
ज्यादातर लोगों का मानना है कि मोटे लोगों को ही दिल की बीमारी का खतरा ज्यादा बना रहता है, लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। पतले लोगों को भी हार्ट अटैक का खतरा हो सकता है। हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन

कहीं आपको भी तो यह नहीं लगता कि आप दुबली हैं, आपका वजन हमेशा नियंत्रण में रहता है तो आपको कभी दिल की बीमारी नहीं होगी? अगर ऐसा है तो डेली मेल में प्रकाशित सेहत की इस खबर पर नजर डाल लें। अमेरिका की डॉक्टर मेयरो फिग्योरा ने हाल ही में टिकटॉक पर अपना एक वीडियो डाला है, जिसे अब तक ढाई लाख लोग देख चुके हैं। इस वीडियो में वे यह कहती नजर आ रही हैं कि देखिए, मैं कितनी दुबली-पतली हूं, स्वस्थ भी लगती हूं। तो आपको क्या लगता है, मुझे दिल की बीमारी नहीं हो सकती? अगर ऐसा है तो आप गलत समझ रहे हैं। सिर्फ मोटे लोगों को ही नहीं, पतले लोगों को भी दिल संभालना पड़ता है। सही खानपान के साथ, डॉक्टर मेयरो तीस साल के बाद मांसपेशियों के रखरखाव और हर दिन व्यायाम को जरूरी मानती हैं।
मैकिन्से एंड कंपनी के ‘वीमन इन द वर्कप्लेस’ अध्ययन के मुताबिक हमारे देश में प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों में शुरुआती स्तर पर पुरुषों के मुकाबले कार्यबल में स्त्रियों की हिस्सेदारी मात्र 33 प्रतिशत है। यानी आज भी हर दस में से तीन युवती ही पढ़ाई के बाद निजी सेक्टर में नौकरी के लिए चुनी जाती है। और मैनेजर के पद पर तो 24 प्रतिशत ही लड़कियां काम कर रही हैं। यानी उच्च पदों पर काम करने वाली महिलाओं की संख्या आज भी कम है। इस अध्ययन में हमारे देश के 324 निजी संस्थानों को शामिल किया गया था। लगभग नौ लाख कर्मचारियों से बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई। इस अध्ययन में इस बात का भी खुलासा हुआ कि जिस पद पर एक पुरुष 32 साल में पहुंचता है, उसी पद पर एक स्त्री 39 की उम्र में पहुंचती है। कामकाजी संस्थानों में लिंग आधारित इस अध्ययन के अनुसार आज भी स्त्रियों को योग्यता के बावजूद उचित पद नहीं दिया जाता। इस अध्ययन में शामिल कामकाजी स्त्रियों ने यह भी माना कि घर के साथ-साथ कार्य स्थल पर अपना शत-प्रतिशत देना उनके लिए अपने पुरुष सहयोगी के मुकाबले कितना मुश्किल है। हालांकि लगभग 11 प्रतिशत स्त्रियों ने माना कि घर के कामकाज में उनके पति सहयोग करते हैं और इस वजह से वे दफ्तर की अपनी जिम्मेदारियां बिना तनाव के निभा पाती हैं।
महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले अधिक तनाव
तनाव किसे नहीं होता? इसी स्तंभ में कई बार यह बात कही जा चुकी है कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अधिक तनाव होता है और अवसाद भी। एक नए अध्ययन में यह नतीजा निकला है कि तनाव की वजह से शरीर में पड़ने वाले कई प्रभावों में से यह एक प्रभाव काफी अहमियत रखता है। तनाव की वजह से मूड में बदलाव आना, अवसाद आदि तो होता ही है। इस नए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ कि तनाव की वजह से स्त्रियों में भावनात्मक नुकसान सबसे अधिक होता है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुए इस अध्ययन के मुताबिक तनाव की वजह से लगभग 52 प्रतिशत महिलाओं को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कम रहने लगता है। इसकी वजह से उनका मेटाबॉलिज्म बिगड़ने लगता है, मस्तिष्क में ऐसे रसायन बनने लगते हैं, जिसकी वजह से उनके हार्मोन में उतार-चढ़ाव बढ़ने लगता है। इस सबका असर पीरियड पर पड़ता है। पीरियड के दौरान अधिक रक्तस्त्राव, दर्द, सिरदर्द, शरीर में सूजन, अकड़न, त्वचा में शुष्कता और नकारात्मक सोच सब इसकी वजह से होता है। अध्ययन में शामिल डॉक्टर ऐल्विस रोजर मानते हैं कि महिलाएं योग, व्यायाम और अपने आपको व्यस्त रखकर तनाव के कुपरिणामों से काफी हद तक बच सकती हैं।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।