बढ़ती उम्र के साथ बेटी का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूर सिखाएं ये बातें
बढ़ती उम्र के साथ ही अकसर बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ने की जगह घटने लगता है। आपकी लाडली के साथ ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी कदम आपको ही उठाने होंगे। कैसे? बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी

तुम क्या आज भी क्लास में अपनी बात नहीं कह पाई? मेरी बेटी तो मन की बात मन में ही दबा कर रह जाती है। घर में तो बोलती है, पर न जाने क्यों बाहर जाते ही इसकी जुबान पर ताला लग जाता है। क्या आप या आपकी बिटिया भी कुछ ऐसी समस्या से जूझ रही हैं? जवाब अगर हां है, तो मुमकिन है उसके भीतर आत्मविश्वास की कमी हो। जानकारों की मानें तो 8 से 14 साल के बीच बच्चियों के आत्मविश्वास में 30 फीसदी तक गिरावट आ जाती है। इस बाबत मनोरोग चिकित्सक डॉ. स्मिता श्रीवास्तव कहती हैं कि यह कमी किशोरावस्था, सामाजिक दबाव, नकारात्मक अनुभव, असफलता के डर सरीखे कई कारणों के चलते हो सकती है। इस बारे में चिंता करना जरूरी है, पर माता-पिता, शिक्षकों के व्यवहार और कुछ प्रयासों से इस कमी को ठीक किया जा सकता है। बस जरूरत है तो व्यवहार और नजरिये को बदलने की।
सिखाएं खुद से प्यार करना
जिंदगी के फलसफे मां से बेहतर बेटी को कोई और नहीं सिखा सकता। मां कैसे उठती- बैठती है। वह दूसरों या अपने बारे में क्या सोचती है, इन तमाम चीजों का सीधा असर बेटी के व्यक्तिव पर दिखाई देता है। ऐसे में मां की जिम्मेदारी बेटी के प्रति बढ़ जाती है। बढ़ती उम्र के साथ बच्ची बदल रही होती है। उसके लिए हर चीज मायने रखती है, उसका रंग, शरीर, बाल और कपड़े से लेकर नाखून तक। किसी के द्वारा की गई एक नकारात्मक टिप्पणी उसे कई दिनों तक सोच में डाल सकती है। यह जिम्मेदारी मां की है कि वह ऐसे मौकों पर बच्ची की नकारात्मक सोच में सकारात्मकता का पुट डालें। हर काम को करते वक्त इस बात ख्याल रखें कि बच्ची पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। जैसे मां कपड़े पहनते वक्त बोले कि मैं इस ड्रेस में ज्यादा मोटी दिखूंगी, इसलिए यह नहीं पहनती। ऐसे में बच्ची पर भी अपने वजन को लेकर दबाव बनेगा। ऐसी स्थिति में मां अगर सकारात्मक बोलती है कि मुझे दूसरी ड्रेस ज्यादा पसंद है, तो बेहतर होगा। मां का अपने रंग, वजन, लुक को लेकर नाखुश रहना बेटी में भी वैसी ही आदतों को बढ़ा देता है। अध्ययन बताते हैं कि जो बेटियां अपनी मां को अपने शरीर से नाखुश देखती हैं, वे भी अपने बारे में वैसा ही महसूस करती हैं। ऐसा लंबे समय तक रहने के कारण आत्म-आलोचना और अस्वस्थ आदतों को बढ़ावा देता है। ऐसे में बेहतर होगा कि आप बच्ची को सकारात्मक रहते हुए तमाम चीजों की जरूरत को समझाएं। जैसे आप बढ़ते वजन को कम करने को कहने के बजाय साथ में टहलना या डांस सरीखे तरीकों को अपनाएं। उनको अहसास कराएं कि यहां मामला कैलोरी को कम करने का नहीं बल्कि साथ में मिलकर आनंद लेने का है। सीधे शब्दों में कहें तो मां बच्ची को सिखा सकती हैं कि आपकी उपलब्धियां आपके लुक से ज्यादा मायने रखती हैं। उसे बताएं कि मोटा-पतला, काला-गोरा या उसका रूप-रंग उसे किसी भी तरह से कमतर नहीं बनाता। उसे यकीन दिलाएं कि सीरत का अच्छा होना ज्यादा मायने रखता है। बच्ची को अपनी बातों का यकीन दिलाने के लिए आप आप अपनी जिंदगी के किस्से-कहानियों का सहारा ले सकती हैं।
रखने दें राय
तुम चुप रहो। तुमसे किसने पूछा। वो लड़का है, वो कर सकता है। कई बार बेटियों को सवालों के बदले ऐसे जवाब सुनने के लिए मिल जाते हैं। हो सकता है अभिभावक के तौर पर आप यह महसूस करती हों कि आप बेटी के लिए ज्यादा अच्छे फैसले ले सकती हैं। पर, आपका या आपके घर के किसी भी और सदस्य का यह व्यवहार बच्ची के मन पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। अगर आपके घर में भी ऐसा होता है, तो इसे रोकना जरूरी है। यकीनन यह बर्ताव बच्ची की जुबान को फौरी तौर पर बंद करवा देगा। पर, आपका यह रवैया उसके आत्मविश्वास पर गहरी चोट करेगा। मुमकिन है कि आगे चलकर वह अपनी राय रखने के पहले डरने लगे या अपनी राय बना ही न पाए। ऐसा आपकी लाडली के साथ न होने पाए, इसके लिए आप उनसे तमाम छोटी-बड़ी बातों पर उनकी राय को पूछें। जहां वह गलत हो, उसे सही तरीके से समझाएं और बताएं। बेटा और बेटी में भेदभाव न करें।
ये भी आजमाएं
-बच्ची को जिम्मेदारियां उठाने दें। गलतियां होने पर सीधे सवाल करने से बचिए। संकेतों से गलतियों या भूलों की ओर इशारा कीजिए। सीधे-सीधे दखल देने बजाय दूर से उस पर नजर बनाए रखिए। उसे सिखाइए कि भूल करना गलत नहीं है, पर उससे सीख लेना बेहद जरूरी है।
-नए सीखे काम को दूसरों को बताने और उनसे प्रशंसा हासिल करने से बच्चे के आत्मविश्वास में इजाफा होता है। अपने बच्चे को ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। ऐसा करने से उसके भीतर अभिव्यक्ति और पाठन की क्षमता में इजाफा होगा।
-अपने बच्चे को निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़िए। बच्ची को छोटी-छोटी जिम्मदारियां दीजिए। उसे अपनी कल्पनाशीलता का प्रयोग करने दीजिए। इससे समाधान खोजने की उसकी क्षमता बढ़ेगी। इससे मिला प्रोत्साहन उसके आत्मविश्वास भी में इजाफा करेगा।
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