'हम खुश हैं...', उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने की अटकलों पर देवेंद्र फडणवीस
- राजनीति के जानकार बताते हैं कि शिवसेना के टूटने और विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन से उद्धव ठाकरे की स्थिति कमजोर हुई है। उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की जरूरत है। राज ठाकरे की मनसे का प्रभाव भी सीमित हो गया है।

महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक साथ आने की चर्चा जोरों पर है। हाल के घटनाक्रम और दोनों नेताओं के बयान इसका संकेत दे रहे हैं। इसे लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शनिवार को प्रतिक्रिया दी। उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे के संभावित मिलन पर खुशी जताई। उन्होंने कहा, 'हमें खुशी है कि ठाकरे बंधु एक साथ आ रहे हैं। वे ही इस पर बेहतर तरीके से टिप्पणी कर सकते हैं।' इससे पहले, आज ठाकरे बंधुओं ने आपसी मतभेदों को भुलाकर महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हित के लिए एकजुट होने की इच्छा जताई।
राज ठाकरे ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि महाराष्ट्र के लिए छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर उद्धव के साथ काम करने को तैयार हैं, बशर्ते उद्धव भी इसके लिए राजी हों। इसके कुछ समय बाद उद्धव ठाकरे का इस पर जवाब आया। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से कोई झगड़ा नहीं है और वे महाराष्ट्र के हित में एकजुट होने को तैयार हैं, लेकिन इसके लिए राज को महाराष्ट्र विरोधी ताकतों से दूरी बनानी होगी। यह चर्चा आगामी बीएमसी और नगर निकाय चुनावों से पहले तेज हुई है। दोनों नेताओं के एक साथ आने से मराठी वोटों का बंटवारा रुक सकता है, जिससे शिवसेना (यूबीटी) और मनसे को फायदा हो सकता है। हाल ही में एक शादी समारोह में दोनों की मुलाकात ने इन अटकलों को और हवा दी थी।
ठाकरे बंधुओं के साथ आने से किसे फायदा
राजनीति के जानकार बताते हैं कि शिवसेना के टूटने और विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन से उद्धव ठाकरे की स्थिति कमजोर हुई है। उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की जरूरत है। वहीं, राज ठाकरे की मनसे का प्रभाव सीमित हो गया है और विधानसभा चुनाव में उनके बेटे अमित ठाकरे की हार ने उनकी स्थिति कमजोर की है। ऐसे में, दोनों के लिए एकजुट होना रणनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकता है। हालांकि, उद्धव ने शर्त रखी है कि मनसे को बीजेपी जैसे महाराष्ट्र विरोधी दलों से दूरी बनानी होगी। संजय राउत ने भी कहा कि अगर राज बीजेपी से नाता तोड़ें, तो बात आगे बढ़ सकती है। इन बयानों से साफ है कि दोनों के बीच सुलह की राह आसान नहीं, लेकिन मराठी एकता और बीएमसी चुनावों की रणनीति इसे संभव बना सकती है।