'अदृश्य शक्तियों' के कब्जे में थी मां, रॉड से पीट-पीट कर मार डाली बेटियां; अब SC ने कर दिया रिहा
फैसले में यह भी कहा गया कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले लोग अक्सर स्किजोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर जैसे मानसिक रोगों के बारे में नहीं जानते।

अपनी पांच और तीन साल की दो मासूम बेटियों को रॉड से पीट-पीट कर मौत के घाट उतारने वाली महिला को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उम्रकैद की सजा घटाकर 'गैर इरादतन हत्या' कर दिया, जिससे महिल को जेल से बाहर जाने को मिला है। यह मामला छत्तीसगढ़ का है। यहां एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही महिला सामान्य और सुखी पारिवारिक जीवन जी रही थी, लेकिन उसने एक दिन अचानक अपनी दो मासूम बेटियों को क्रूरता से रॉड से पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया। इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद वह लगातार रोती रही और दावा किया कि घटना के वक्त वह 'अदृश्य शक्तियों' के कब्जे में थी।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने महिला को दोषी मानते हुए हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह फैसला पलट दिया और हत्या की जगह 'गैर इरादतन हत्या' माना। महिला ने करीब 10 साल जेल में बिताए हैं, इसलिए कोर्ट ने उसे रिहा करने का आदेश दिया।
जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने अपने फैसले में कहा कि महिला द्वारा घटना से 15 दिन पहले "मैं माता हूं, बूढ़ी दाई हूं" जैसे भ्रमपूर्ण बातें करना, और उसके बाद मनोचिकित्सक से उसका इलाज कराना यह संकेत देता है कि वह मानसिक असंतुलन से जूझ रही थी। ग्रामीण इलाकों में अक्सर मानसिक रोगों को 'भूत-प्रेत' या 'अदृश्य शक्तियों' का प्रभाव मान लिया जाता है, जिससे सही इलाज नहीं मिल पाता।
कोर्ट ने कहा, "अगर महिला के पास अपनी बच्चियों को मारने का कोई स्पष्ट कारण या प्रेरणा नहीं थी, और वह सामान्य पारिवारिक वातावरण में रह रही थी, तो यह समझ पाना बहुत कठिन है कि कोई मां, जो अपने बच्चों से प्यार करती है और अपने पति से अच्छे संबंध रखती है, इतनी हिंसक कैसे हो सकती है। इसका एकमात्र कारण यही हो सकता है कि वह किसी ऐसी शक्ति या मानसिक स्थिति के प्रभाव में थी, जो उसके नियंत्रण से बाहर थी।"
फैसले में यह भी कहा गया कि "ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले लोग अक्सर स्किजोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर जैसे मानसिक रोगों के बारे में नहीं जानते। ये लक्षण जब बिना इलाज के रह जाते हैं, तो अक्सर इन्हें अंधविश्वास और 'जादू-टोना' से जोड़ दिया जाता है।" कोर्ट ने महिला को मानसिक अस्थिरता और विशेष परिस्थितियों को देखते हुए राहत दी और 10 वर्षों की सजा को पर्याप्त मानते हुए उसकी रिहाई का आदेश दिया।