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विधानसभा का गला न दबाएं, जनता चुनती है MLA; राज्यपालों को SC ने दी क्या-क्या नसीहत

  • अदालत ने गवर्नर टीएन रवि को नसीहत दी और कहा कि आपके पास ऐसी कोई वीटो पावर नहीं है कि बिल को रोके रखें। अदालत ने कहा कि भले ही संविधान में समयसीमा का जिक्र नहीं है, लेकिन राज्यपाल अनंतकाल के लिए विधेयकों को अटका नहीं सकते। अदालत ने लोकतंत्र और विधायकों को जनता द्वारा चुने जाने की भी दुहाई दी।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 8 April 2025 03:07 PM
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विधानसभा का गला न दबाएं, जनता चुनती है MLA; राज्यपालों को SC ने दी क्या-क्या नसीहत

तमिलनाडु के राज्यपाल टीएन रवि और सीएम एमके स्टालिन के बीच मतभेद की खबरें अकसर आती रहती हैं। राज्यपाल ने पिछले दिनों विधानसभा की ओर से मंजूर 10 विधेयकों को रोक लिया था। उन पर कोई फैसला नहीं लिया गया था, जबकि उन्हें एक बार लौटाने के बाद फिर से पारित करके भेजा गया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने गवर्नर टीएन रवि को नसीहत दी और कहा कि आपके पास ऐसी कोई वीटो पावर नहीं है कि बिल को रोके रखें। यही नहीं अदालत ने कहा कि भले ही संविधान में समयसीमा का जिक्र नहीं है, लेकिन राज्यपाल अनंतकाल के लिए तो विधेयकों को अटका कर नहीं रख सकते। यही नहीं अदालत ने लोकतंत्र और विधायकों को जनता द्वारा चुने जाने की भी दुहाई दी।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि आजकल ऐसे मामले बढ़ रहे हैं, जब गवर्नर बिलों को रोक लेते हैं। ऐसा करना गलत है और यह विधानसभा का गला दबाने जैसा है। आइए जानते हैं, गवर्नरों को बेंच ने क्या-क्या नसीहतें दीं...

1. राज्यपालों को यह विचार करना चाहिए कि वे किसी विधेयक के रास्ते में बाधा न बनें। ऐसा करना विधानसभा का गला दबाने जैसा होगा। राजनीतिक कारणों से विधानसभा से पारित विधेयकों को रोके रखना ठीक नहीं है। विधानसभा के सदस्यों को जनता के द्वारा चुना जाता है। लोकतंत्र की प्रक्रिया के तहत चुनाव होता है और जनता की अभिव्यक्ति के माध्यम से कोई विधायक बनता है। वे जनता के हितों की पूर्ति के लिए प्राथमिक तौर पर जिम्मेदार होते हैं।

2. राज्यपालों को संसदीय लोकतंत्र के अनुसार काम करना चाहिए। उन्हें जनता की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और चुने हुए प्रतिनिधियों की ओर से पारित विधेयकों को अनंतकाल के लिए नहीं रोकना चाहिए।

3. अदालत ने कहा कि राज्यपालों को राज्य सरकार के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। उन्हें एक दार्शनिक की तरह गाइड करना चाहिए और अपनी कोई राजनीतिक मंशा निर्णय में नहीं थोपनी चाहिए। राज्यपाल की शपथ भी यही होती है।

4. मतभेदों और संघर्ष के इस दौर में राज्यपाल को समन्वय स्थापित करना चाहिए। उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि राज्य का कामकाज अच्छे से चले। उन्हें अपने विवेक से वे फैसले लेने चाहिए, जिससे राज्य का हित हो। यथास्थिति बनाए रखना या फिर किसी चीज को रोकना उनका काम नहीं है। वह एक सहयोगी हो सकते हैं, लेकिन अवरोधक नहीं। उन्हें अपनी संवैधानिक मर्यादा का ख्याल करते हुए काम करना चाहिए।

5. हमारे पूर्वजों के बलिदान और संघर्ष के बाद यह लोकतांत्रिक व्यवस्था हमें मिल सकी है। निर्णय लेने की जब बारी आती है तो राज्यपालों को संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। उन्हें यह सोचना चाहिए कि उनका काम संविधान के अनुसार है या फिर नहीं। यदि इस तरह अथॉरिटीज ही संविधान का उल्लंघन करेंगी तो फिर यह सही नहीं होगा।

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6. अंत में अदालत ने भीमराव आंबेडकर की एक टिप्पणी भी पढ़ी, जो उन्होंने संविधान को लेकर की थी। आंबेडकर ने कहा था, 'एक अच्छा संविधान भी खराब बन सकता है, यदि उसे लागू करने वाले लोग अच्छे न हों। लेकिन एक खराब संविधान भी अच्छा हो सकता है, यदि उसे लागू करने वाले लोग सही हों।'