सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से भाजपा ने राजनीतिक निशाने भी साधे
नई दिल्ली में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक विवाद गहरा गया है। विपक्ष ने भाजपा पर निशाना साधा है, जबकि भाजपा ने कांग्रेस के अंतर्विरोधों का लाभ उठाया है। 33 देशों में...

रामनारायण श्रीवास्तव नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर बनी राष्ट्रीय एकजुटता पर राजनीतिक रंग चढ़ने लगा है। कांग्रेस व भाजपा के बीच सोशल मीडिया से लेकर नेताओं के बयानों तक में जमकर निशाने साधे जा रहे हैं। एक दूसरे की नीयत पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। ऐसे में कूटनीतिक मोर्चे पर जा रहे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को लेकर भी राजनीति हो रही है। विपक्ष के सवालों के बीच भाजपा ने इसके जरिए भी राजनीतिक निशाने साधे हैं। आतंकवाद के मुद्दे को लेकर सामरिक मोर्चे पर पाकिस्तान पर कड़ा प्रहार करने के बाद सरकार ने अब कूटनीतिक मोर्चा भी खोल दिया है।
सरकार ने पाकिस्तान के प्रोपगेंडा का पर्दाफाश करने के लिए 33 देशों में सात प्रतिनिधिमंडल भेजना शुरू कर दिया है। इनमें सभी दलों के सांसदों के साथ प्रमुख नेता एवं राजनयिकों समेत 59 सदस्य शामिल हैं। कांग्रेस व कुछ दलों ने इसके सदस्यों को लेकर सरकार पर राजनीति करने के आरोप लगाए तो भाजपा ने भी विपक्ष पर देशहित को लेकर सवाल खड़े कर दिए। विपक्ष, खासकर कांग्रेस को इस मोर्च पर मोदी सरकार व भाजपा को घेरना भारी पड़ रहा है, क्योंकि प्रतिनिधिमंडल में जा रहे उनके ही नेता अपनी पार्टी की राय से अलग विचार रख रहे हैं। यानी कांग्रेस का अंतर्विरोध भी सामने आ गया है। दूसरी ओर, शरद पवार ने कांग्रेस पर सवाल खड़े कर इंडिया गठबंधन में दरार डाल दी है। इंडिया गठबंधन के दो प्रमुख दल एनसीपी (शरद पवार) और द्रमुक का रुख कांग्रेस से एकदम अलग है। दरअसल, पवार की बेटी सुप्रिया सुले और द्रमुक नेता स्वर्गीय करुणानिधि की बेटी कनिमोई एक-एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रही हैं। वहीं, प्रतिनिधिमंडल में शामिल कांग्रेस के दो पूर्व मंत्रियों सलमान खुर्शीद और शशि थरूर ने भी पार्टी लाइन की ज्यादा परवाह नहीं की है। ममता बनर्जी के सुर भी बदले प्रधानमंत्री ने विपक्ष के अन्य दलों को भी इस मुद्दे पर जोड़ा है। ममता बनर्जी के भी सुर बाद में बदल गए जब उन्होंने अपने भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी को प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया। इस पूरे मामले में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होने पर तो मजबूर हुई ही है, लेकिन अपने बयानों से अपने गठबंधन में अलग-थलग पड़ गई है। वह विपक्ष को भी एक साथ जोड़ने में असफल साबित हुई है। साथ ही वह राष्ट्रीय मुद्दे पर एक बार फिर भाजपा के निशाने पर आ गई है। सहयोगियों को साधा भाजपा नेतृत्व ने अपने सहयोगी दलों को भी इस मिशन के जरिए साधा है। तेलुगु देशम और जनता दल यू को प्रमुखता दी गई है और सभी सहयोगी दलों के सांसदों को इसमें शामिल किया गया है। भाजपा ने अपने काडर को भी संदेश दिया है कि वह विपक्ष के भ्रम में न आए और आपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है। इस समय अति उत्साह की जरूरत नहीं है बल्कि मजबूती से आगे बढ़ने की जरूरत है।
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