सिविल जज बनने के लिए तीन साल की वकालत जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज की नियुक्ति के लिए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायपालिका के सबसे निचले स्तर पर जज बनने के लिए वकील के रूप में न्यूनतम तीन साल की वकालत अनिवार्य की गई है। इस फैसले का...

प्रभात कुमार नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सिविल जज की नियुक्ति को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। कहा कि न्यायपालिका के सबसे निचले स्तर पर जज बनने के लिए न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा में शामिल होने के लिए वकील के तौर पर न्यूनतम तीन साल की वकालत यानी व्यावहारिक ज्ञान अनिवार्य है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि एलएलबी उत्तीर्ण करने के बाद सीधे अभ्यर्थी को न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि एक न्यायिक अधिकारी के लिए सिर्फ किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं होता है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ जिला न्यायपालिका में नियुक्त होने वाले जज के लिए अदालतों के कामकाज के अनुभव के महत्व को रेखांकित करते हुए यह फैसला दिया।
इसी के साथ पीठ ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) पदों पर आवेदन के लिए तीन साल की न्यूनतम वकालत की अनिवार्यता बहाल कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया जज एसोसिएशन एवं अन्य की याचिका पर यह फैसला दिया है। फैसले में यह भी अहम - जिन राज्यों में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू हो गई है, उन मामलों में यह फैसला प्रभावी नहीं होगा। - जज के साथ विधि क्लर्क के रूप प्राप्त अनुभव को तीन वर्ष की वकालत/अभ्यास अवधि में शामिल किया जाएगा। नियमों में संशोधन का आदेश - सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित नियमों में संशोधन करके यह प्रावधान करने को कहा है कि सिविल जज सीनियर डिवीजन का 10 फीसदी पद त्वरित पदोन्नति से भरने के लिए आरक्षित करने का प्रावधान हो। - सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के कैडर से उच्चतर न्यायिक सेवा में पदोन्नति के लिए आरक्षण का कोटा बढ़ाकर 25 फीसदी किया जाए। - उच्चतर न्यायिक सेवा में पदोन्नति के लिए होने वाली परीक्षा के लिए आवश्यक न्यूनतम योग्यता सेवा को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के रूप में तीन साल को घटा दिया जाए। साथ ही सिविल जज (जूनियर डिवीजन) और सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के रूप में की गई सेवा सहित कुल आवश्यक सेवा की न्यूनतम सात वर्ष की सेवा निर्धारित की जाए। पदोन्नत के लिए मानदंड पर्याप्त नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के कैडर से उच्च न्यायिक सेवा के कैडर में पदोन्नत किए जाने के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता का आकलन करने के लिए मौजूदा मानदंड पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए नये नियम बनाए जाएं या मौजूदा नियम में संशोधन कर निम्न बिंदुओं का आकलन हो - - क्या उम्मीदवार के पास कानून का अद्यतन ज्ञान है - न्यायिक अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णयों की गुणवत्ता - न्यायिक अधिकारी की पिछले पांच वर्षों की एसीआर - पिछले पांच वर्षों में निपटान दर - मौखिक परीक्षा में न्यायिक अधिकारी का प्रदर्शन - सामान्य धारणाएं और जागरूकता तथा संचार कौशल ------------ नए विधि स्नातकों की नियुक्ति से समस्या : सुप्रीम कोर्ट ने अदालती कामकाज के अनुभव के बगैर न्यायिक अधिकारियों के रूप में नए कानून स्नातकों की नियुक्ति पर चिंता व्यक्त की। कहा कि पिछले 20 वर्षों में एक दिन भी वकालत किए बगैर न्यायिक अधिकारियों के रूप में नए विधि स्नातकों की नियुक्ति सफल अनुभव नहीं रहा। नए विधि स्नातकों ने न्यायिक अधिकारियों के रूप में कई समस्याओं को जन्म दिया। मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इन समस्याओं के बारे में कई हाईकोर्ट ने जानकारियां दी हैं। उन्होंने न्यायिक दक्षता और क्षमता सुनिश्चित करने के लिए अदालत में व्यावहारिक अनुभव को अनिवार्य बताया। कोट-- न्यायिक अधिकारियों को कार्यकाल के पहले दिन से ही जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और प्रतिष्ठा से जुड़े मामलों को सौंपा जाता है। ऐसे में कानून की किताबों या प्री-सर्विस ट्रेनिंग के माध्यम से प्राप्त सैद्धांतिक ज्ञान, उनकी भूमिका की जटिल मांगों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हैं। न तो कानून की किताबों पर आधारित ज्ञान और न ही पदभार संभालने से पहले का प्रशिक्षण, न्यायालय प्रणाली और न्याय प्रशासन के कामकाज के प्रत्यक्ष अनुभव का पर्याप्त विकल्प हो सकता है। - बीआर गवई, मुख्य न्यायाधीश हाईकोर्ट का समर्थन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में व्यावहारिक अनुभव के महत्व पर कहा है कि भावी जज को अदालती कार्यवाही से परिचित होना चाहिए। इस तरह का अनुभव उम्मीदवारों को न्यायिक भूमिका की जटिलताओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने कई हाईकोर्ट में प्रचलित दृष्टिकोण पर सहमति व्यक्त करते हुए न्यायिक सेवा के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता का समर्थन किया। राज्यों में नियुक्ति पर एकरूपता नहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि सिविल जज-सह-मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी/मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी और मुंसिफ मजिस्ट्रेट के लिए न्यूनतम योग्यता के संबंध में सभी राज्यों में एकरूपता नहीं है। कुछ राज्यों ने कानून की डिग्री के अतिरिक्त न्यूनतम तीन वर्ष की वकालत को अनिवार्य किया है, लेकिन कई राज्यों ने इसे पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। वहां सिर्फ कानून की डिग्री के आधार पर नियुक्ति की जाती है।
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