लोकभाषाओं का संरक्षण जरूरी: जलंधरी
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ। विद्वानों ने उत्तराखंडी लोक भाषाओं के संरक्षण, समानार्थी शब्दों के प्रयोग और साहित्य निर्माण पर चर्चा की। प्रो. मंजुला राणा...

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के शैक्षणिक गतिविधि केंद्र में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का समापन बुधवार को हुआ। उत्तराखंड राज्य विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद उत्तराखंडी भाषा न्यास(उभान) एवं हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला में उत्तराखंडी लोक भाषाओं के समानार्थी शब्दों का प्रयोग एवं समरूप साहित्य का निर्माण पर विद्वानों ने चर्चा की। समापन सत्र की अध्यक्षता कर रही संकायाध्यक्ष प्रो. मंजुला राणा ने भाषा के महत्व और गढ़वाली शब्दों की मनोवैज्ञानिकता, प्रभाव और प्रसार पर अपने विचार रखे। उन्होंने स्थानीय लेखकों को अधिक से अधिक मंच देने की बात कही और कार्यशाला के सभी वक्ताओं के विचारों की समीक्षा की। अंतिम सत्र में उभान के मुख्या वक्ता डॉ बिहारीलाल जलंधरी ने लोकभाषाओं के संरक्षण पर विस्तृत चर्चा की और इस क्षेत्र में शोध की नई संभावनाओं पर सुझााव दिए। कार्यक्रम में समाजसेवी दयानंद सिलवाल ने उत्तराखंडी भाषा के विकास के सभी आयामों जैसे लोकगीत,लोकसाहित्य और भाषाई विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। विभाग के डॉ अनूप सेमवाल ने कहा कि उतराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति है जिसे नई पीढ़ी को अपनाना होगा और अपनी बोली का प्रयोग करना होगा। डॉ कपिल पंवार ने कार्यशाला में वीडियो फिल्म के माध्यम से हिंदी सिनेमा में उतराखंड की लोकसंस्कृति और भाषाओं के प्रयोग पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि यदि लोकभाषाओं का प्रयोग सिनेमा में होगा तो उससे भाषाओं को निश्चित रूप से संरक्षण मिलेगा। मंच संचालक और संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ बालकृष्ण बधानी ने भाषा के शास्त्रीय स्वरूप पर चर्चा की। हिंदी विभाग के शोधार्थी आनन्द, प्रमोद, तरूण, पी.अंजलि ने अपने शोधपत्र का पाठन किया। इस मौके पर हिंदी सुल्तान सिंह तोमर, भयात संस्था के नरेन्द्र सिंह रावत, डॉ गौरीश नन्दिनी, डॉ सविता मैठाणी, लवकेश कुमार, सोरभ, अंकित उछोली, शीतल, अम्बिका समेत हिंदी, संस्कृत, समाजशास्त्र, पत्रकारिता आदि विभागों के शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे ।
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