इलेक्ट्रिक वाहन उतने भी सही नहीं, जितना हम सोचते हैं; टोयोटा प्रमुख ने खोल दी पोल
इलेक्ट्रिक वाहन उतने भी सही नहीं हैं, जितना हम सोचते हैं। टोयोटा चेयरमैन अकीओ टोयोडा ने हाल ही में फिर से इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर चर्चा छेड़ दी है। उनका कहना है कि ईवी को पूरी तरह क्लीन एनर्जी नहीं कहा जा सकता।

जब पर्यावरण के अनुकूल वाहनों की बात होती है, तो जहन में सबसे पहले इलेक्ट्रिक कारों का नाम आता है। लेकिन, अगर टोयोटा जैसी ग्रीन टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनी के चेयरमैन कहें कि इलेक्ट्रिक कारें उतनी सही नहीं हैं, जितनी हम सोचते हैं, तो बहस होना लाजमी है। टोयोटा चेयरमैन अकीओ टोयोडा (Toyota Chairman Akio Toyoda) टोयोटा अकीओ टोयोडा के अध्यक्ष) ने हाल ही में फिर से इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर चर्चा छेड़ दी है। उनका कहना है कि ईवी (EVs) की असली पर्यावरणीय लागत अक्सर छिपी रहती है और सिर्फ “नो टेलपाइप एमिशन” से इन्हें पूरी तरह क्लीन एनर्जी नहीं कहा जा सकता।
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छिपा हुआ प्रदूषण: बैटरी से लेकर बिजली तक
बिल्कुल साफ दिखने वाली इलेक्ट्रिक कारें दरअसल उतनी क्लीन नहीं होतीं। सबसे बड़ा कारण इनकी बैटरियों का निर्माण है, जिसमें लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसी धातुओं का खनन होता है। यह खनन न सिर्फ महंगा है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है। इसके अलावा ये धातुएं हजारों किलोमीटर तक यात्रा करती हैं, खदान से फैक्ट्री और फिर वाहन तक, जिससे काफी कार्बन उत्सर्जन होता है।
ये बात यहीं खत्म नहीं होती। ईवी की चार्जिंग के लिए जिस बिजली का उपयोग होता है, अगर वो बिजली कोयले या गैस से बनती है, तो EV की कुल पर्यावरणीय छवि काफी धुंधली हो जाती है। टोयोडा ने जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां अगर EVs की संख्या बढ़ती है, तो कुल उत्सर्जन और भी ज्यादा हो सकता है, क्योंकि वहां की बिजली अभी भी थर्मल पावर से आती है।
हाइब्रिड वाहन: प्रैक्टिकल और संतुलित विकल्प
कारस्कूप्स (Carscoops) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, टोयोटा की दुनिया भर में 27 मिलियन से ज्यादा हाइब्रिड गाड़ियों की बिक्री हो चुकी है। टोयोडा का दावा है कि इन वाहनों ने करीब 9 मिलियन इलेक्ट्रिक कारों जितना कार्बन उत्सर्जन कम किया है, लेकिन बिना बड़े पैमाने पर बैटरी या चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत के ही यह संभव हो पाया है।
हाइब्रिड गाड़ियां पेट्रोल और इलेक्ट्रिक मोटर का संयोजन हैं। ये खुद-ब-खुद चार्ज होती हैं और 40% तक फ्यूल की बचत करती हैं। खास बात यह है कि इन्हें चार्जिंग स्टेशन की जरूरत नहीं होती, जो कि भारत जैसे देशों में एक बहुत बड़ा फायदा है।
एक नहीं, कार्बन न्यूट्रैलिटी के कई रास्ते
टोयोडा पूरी तरह EV के खिलाफ नहीं हैं। वो मानते हैं कि हमें सिर्फ एक टेक्नोलॉजी पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उनके अनुसार, हाइब्रिड, प्लग-इन हाइब्रिड, हाइड्रोजन और EVs सभी को साथ लेकर चलना चाहिए। हर देश की जरूरतें अलग हैं, कुछ के पास साफ बिजली है, कुछ के पास इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है।
कुछ आलोचक कहते हैं कि टोयोटा इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी में पीछे रह रही है, लेकिन टोयोडा का मानना है कि मकसद गाड़ी बेचना नहीं, कार्बन घटाना होना चाहिए।
भारत में क्यों सही साबित हो रही टोयोटा की सोच
भारत में EVs को लेकर काफी उम्मीदें हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अभी अलग है। यहां चार्जिंग स्टेशन कम हैं, बिजली आज भी कोयले पर निर्भर है और बैटरी आयात पर निर्भरता बहुत ज्यादा है।
टोयोटा इंडिया की रणनीति भी इसी को ध्यान में रखकर बनी है। कंपनी ने अब तक फुल EV लॉन्च नहीं किया है, बल्कि अर्बन क्रूजर हायराइडर (Urban Cruiser Hyryder) और इनोवा हाईक्रॉस (Innova Hycross) जैसी मजबूत हाइब्रिड गाड़ियां लाई हैं। ये गाड़ियां चार्जिंग की झंझट के बिना ही 40% तक कम फ्यूल खपत करती हैं।
हर सड़क स्वच्छता की ओर नहीं जाती
जैसे-जैसे देश और कंपनियां कार्बन न्यूट्रैलिटी की ओर बढ़ रही हैं, अकीओ टोयोडा की बात हमें याद दिलाती है कि हर साफ दिखने वाला विकल्प वाकई साफ नहीं होता। EVs समाधान का हिस्सा हैं, लेकिन सम्पूर्ण समाधान नहीं। भारत जैसे देशों के लिए फिलहाल हाइब्रिड तकनीक वह पुल हो सकती है, जो हमें सच में स्वच्छ, सस्ती और टिकाऊ मोबिलिटी की ओर ले जाए।
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