Patient and dead bodies carried on same trolley in SKCMH Muzaffarpur Bihar जिस ट्रॉली पर 3-4 दिन पड़ी रहती है लाश, उसी पर मरीजों को... बिहार के बड़े मेडिकल कॉलेज का खास्ताहाल, Bihar Hindi News - Hindustan
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जिस ट्रॉली पर 3-4 दिन पड़ी रहती है लाश, उसी पर मरीजों को... बिहार के बड़े मेडिकल कॉलेज का खास्ताहाल

मरजेंसी में जिस ट्रॉली का इस्तेमाल मरीजों के इलाज या जांच कराने के लिए किया जाता है, उसी से शव को पोस्टमार्टम के लिए भी ले जाया जा रहा है। कई बार पोस्टमार्टम हाउस में ट्रॉली पर ही शव को रखकर तीन-चार दिनों तक छोड़ दिया जाता है।

Sudhir Kumar हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुर, हिप्र.Thu, 22 May 2025 11:14 AM
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जिस ट्रॉली पर 3-4 दिन पड़ी रहती है लाश, उसी पर मरीजों को... बिहार के बड़े मेडिकल कॉलेज का खास्ताहाल

बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एसकेएमसीएच की इमरजेंसी में मरीजों के इलाज में ना सिर्फ लापरवाही बरती जा रही है बल्कि उनकी जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। इमरजेंसी में जिस ट्रॉली का इस्तेमाल मरीजों के इलाज या जांच कराने के लिए किया जाता है, उसी से शव को पोस्टमार्टम के लिए भी ले जाया जा रहा है। कई बार पोस्टमार्टम हाउस में ट्रॉली पर ही शव को रखकर तीन-चार दिनों तक छोड़ दिया जाता है। इससे शव से निकला खून भी ट्रॉली में लग जाता है। इसी ट्रॉली का इस्तेमाल गंभीर मरीजों को इलाज के लिए ले जाने में भी किया जाता है। इससे मरीजों में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

ट्रॉली एजेंसी के सुपरवाइजर ने बताया मरीजों को ट्रॉली से इलाज के लिए लाया जाता है। ट्रॉली पर ही किसी मरीज की मौत हो जाने के बाद शव को पोस्टमार्टम करने की जरूरत होती है। ऐसे में पुलिस उसी ट्रॉली से शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाती है। अगर उसी दिन पोस्टमार्टम नहीं हुआ तो पुलिस ट्रॉली को ही पोस्टमार्टम हाउस में रखवा देती है।

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बता दें कि हर रोज सड़क दुर्घटना और मारपीट मामले में दो दर्जन से अधिक घायल मरीज इलाज के लिए एसकेएमसीएच आते है। इनमें कई मरीजों की मौत हो जाती है। केस होने के बाद पुलिस शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज देती है। समुचित व्यवस्था के अभाव में मरीजों को इलाज के लिए रखी गई ट्रॉली पर ही शव का पोस्टमार्टम भी कराया जा रहा है।

शव ले जाने के लिए अलग व्यवस्था नहीं

इस संबंध में मेडिकल ओपी पुलिस के प्रभारी गौतम कुमार साह ने बताया इमरजेंसी से पोस्टमार्टम के लिए शव ले जाने के लिए ट्रॉली को छोड़कर कोई दूसरी सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए अस्पताल में उपलब्ध ट्रॉली से ही शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा रहा है।

अधीक्षक बोलीं-यह गलत, मांगेंगे जवाब

इधर, एसकेएमसीएच की अधीक्षक प्रो डॉ कुमारी विभा ने बताया पोस्टमार्टम कराना पुलिस का काम है। इमरजेंसी में मरीजों के लिए ट्रॉली की व्यवस्था है। अगल पोस्टमार्टम के लिए ट्रॉली ले जायी जा रही तो यह गलत है। ट्रॉली एजेंसी के सुपरवाइजर से जवाब तलब किया जाएगा। ट्रॉली मरीजों के इलाज के लिए है, पोस्टमार्टम के लिए नहीं।

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सदर में डायलिसिस को कम पड़ रही व्यवस्था

सदर अस्पताल में डायलिसिस को आने वाले आधे से अधिक मरीज को निराश लौटना पड़ रहा है। यहां पीपीपी मोड में डायलिसिस चलती है। यहां डायलिसिस सेंटर में मात्र 11 बेड हैं, जबकि सेंटर में हर दिन 30 से 40 मरीज डायलिसिस कराने आते हैं। मरीजों की संख्या अधिक होने के कारण सेंटर ने सदर अस्पताल प्रशासन ने 10 और बेड की मांग की है। हालांकि अभी इसके लिए स्वीकृति नहीं मिली है। अस्पताल अधीक्षक डॉ. बीएस झा ने बताया कि बेडों की बढ़ाने को सरकार को लिख दिया। एक महीने में बढ़े हुए बेड पर मरीजों की जांच शुरू होगी। सरकारी अस्पतालों में सिर्फ मेडिकल कॉलेज और सदर अस्पताल में ही डायलिसिस की सुविधा है। मेडिकल कॉलेज में मरीजों की भीड़ के कारण सदर अस्पताल में डायलिसिस कराने पहुंचते हैं।

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