नालंदा में गिरा था संजीवनी बूटी वाले पर्वत का टुकड़ा, राजगीर डिस्कवरी ने की खोज
रामायण के अनुसार भगवान राम के भाई लक्ष्मण के मूर्छित होने पर हनुमान हिमालय से संजीवनी बूटी वाला पहाड़ लेकर लंका गए थे। बताया जाता है कि इसी दौरान इस पर्वत का एक हिस्सा नालंदा में गिर गया था। राजगीर डिस्कवरी के शोधकर्ताओं ने जिले के शरीफाबाद में इसकी खोज करने का दावा किया है।

बिहार के नालंदा जिले में हिंदू, जैन, बुद्ध, इस्लाम, सिख और सूफी सर्किटों के कई स्थान मौजूद हैं। राजगीर डिस्कवरी के शोधकर्ताओं ने इस्लामपुर प्रखंड के शरीफाबाद में गुरुवार को छोटे पहाड़ की खोज की। इसका संबंध रामायण काल से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि लक्ष्मण की मूर्च्छा भगाने के लिए ले जा रहे द्रोणगिरि पर्वत के हिस्से का बड़ा टुकड़ा शरीफाबाद में गिरा था, जिसका अवशेष अब भी है।
बुजुर्गों ने बताया कि उत्तराखंड के चमोली जिले के नीति गांव के पास से संकटमोचन हनुमान जब संजीवनी बूटी के लिए इसका बड़ा हिस्सा ले जा रहे थे, तो एक टुकड़ा यहां गिरा था।
यानि, त्रेतायुगीन इस अवशेष को लोग सर्वगुण संपन्न हनुमानजी से जोड़कर देखते हैं। करीब 300 फीट लंबाई और डेढ़ सौ फीट चौड़ाई में पहाड़ फैला हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि अतीत में पहाड़ के चारों ओर जड़ी-बूटियों की भरमार थी। खासकर, संजीवनी बूटी की। लेकिन आबादी बढ़ने के साथ खत्म हो गए।
82 साल के राजकिशोर सिंह ने बताया कि बूटी लेने के लिए हनुमान हिमालय क्षेत्र में पहुंचे थे और द्रोणगिरि का एक बड़ा हिस्सा उखाड़कर लंका (श्रीलंका) ले गए। यह हिमालय पर्वत शृंखला का हिस्सा है। आजकल इसे दोधनाथ पर्वत के नाम से जाना जाता है। द्रोणगिरि पर्वत बद्रीनाथ धाम से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित है। आज भी इसका ऊपरी हिस्सा कटा हुआ दिखाई देता है। द्रोणगिरि की ऊंचाई 7,066 मीटर है।
कहा जाता है कि संजीवनी पर्वत के टुकड़े श्रीलंका के गैले में रुमासाला, हिरिपितिया में डोलु कांडा आदि में भी गिरे थे।
मनोज कुमार सिंह, गुड्डू सिंह, ब्रजेन्द्र सिंह, अजीत सिंह व अन्य ग्रामीणों ने बताया कि हिमालय से श्रीलंका जाने की राह में पड़ने वाले उत्तराखंड, यूपी, ओडिशा सहित भारत के कई राज्यों में संजीवनी बूटी पाई जाती है। पुराणों एवं आयुर्वेद में इसके औषधीय लाभों के बारे में वर्णन है। यह न सिर्फ पेट के रोगों, बल्कि लंबाई बढ़ाने में भी सहायक है।
राजगीर के पहाड़ पर संजीवनी का पौधा
एएसआई पटना के पुरातत्व अधीक्षक डॉ. सुजीत नयन ने बताया कि उन्होंने शरीफाबाद पहाड़ को देखा है। यह पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थल है। जांच एवं कार्बन डेटिंग के बाद ही कहा जा सकता है कि पहाड़ के पत्थरों की आयु कितनी है। इस स्थान को सुरक्षित रखना आसपास के गांवों के लोगों का कर्तव्य बनता है।