संत-महापुरुषों का जीवन दूसरों के लिए होता है: साध्वी वंदना
डेहरी, एक संवाददाता।गहा स्थित हनुमान मानस मंदिर में आयोजित हनुमान चालीसा ज्ञान यज्ञ में कही। कहा कि भरत जी और हनुमान जी श्रीरामचरितमानस के

डेहरी, एक संवाददाता। संतों के संगत में आने से मनुष्य धार्मिक प्रकृति का होता है। रामचरितमानस जैसे ग्रंथ को पढ़ने और सुनने से पापों से मुक्ति मिलती है। मानव जीवन में धर्म के प्रति समर्पित रहना चाहिए। उक्त बातें यूपी की आजमगढ़ से आई साध्वी वंदना सिंह ने डालमियानगर की रतु बिगहा स्थित हनुमान मानस मंदिर में आयोजित हनुमान चालीसा ज्ञान यज्ञ में कही। कहा कि भरत जी और हनुमान जी श्रीरामचरितमानस के वे पात्र हैं, जो राम को पाना और राम कार्य करने को ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ मानते हैं। श्री भरत अयोध्या से सारे समाज को चित्रकुट ले जाकर खुद को धन्य मानते हैं।
साध्वी ने कहा कि ईश्वर एक हैं। लेकिन उनके पास पहुंचने के लिए रास्ते अलग-अलग बनाए गए हैं। कहा कि इस मार्ग में चलने के दौरान मनुष्य अध्यात्मिक ज्ञान नहीं रहने के कारण अज्ञानता से भटकने लगते हैं। कहा आध्यात्म व परमात्मा की मंजिल तक पहुंचने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कहा कि संत महापुरुष अपने लिए शरीर धारण नहीं करते हैं। जिस प्रकार नदी का पानी और वृक्ष का फल दूसरों के लिए होता है। उसी प्रकार संत-महापुरुषों का जीवन दूसरों के लिए होता है। मानव अपने अर्जित ज्ञान के आधार पर ही कुछ देखता, सुनता व समझता है। मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार सुख-दु:ख की प्राप्ति करता है। इस धरती पर जन्म लेने वाले मनुष्यों को एक न एक दिन इस माया रूपी संसार को छोड़कर जाना ही पड़ेगा। यज्ञ को सफल बनाने में प्रफुल्ल सिंह, केश्वर सिंह, प्रो. रणधीर सिन्हा, नरेंद्र सिंह, कुंदन यादव आदि लगे हैं।
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