कला व संस्कृति का धरोहर है सतगावां का घोसीसिमर धाम
कोडरमा जिले के सतगावां प्रखंड में स्थित घोड़सिमर मंदिर कला और संस्कृति का धरोहर है। यह स्थल राज्य स्तरीय पर्यटन स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां देवी देवताओं की सैकड़ों मूर्तियां और प्राचीन...

कोडरमा,सतगावां,प्रतिनिधि। कोडरमा जिले के सतगावां प्रखंड स्थित ढाब दुमदुम्मा मौजा में बसा घोड़सिमर मंदिर कला व संस्कृति का धरोहर है। इसे राज्य स्तरीय पर्यटन स्थल के रूप में सरकार स्तर से शामिल किया गया है। वहीं इसके रख रखाव के लिए भी आवश्यक कदम उठाया जा रहा है। घोड़सिमर धाम प्राचीन काल से स्थित है ।यहां देवी देवताओं की सैकड़ों मूर्तियां है। यहां बने मंदिर के चौखट व पिलर मे बहुत ही सुंदर डिजाइन के देवी देवताओं का चित्र बने हुए हैं ।यहां के मंदिर के चौखट में सन 1336 ईसवी अंकित है ।यहां एक विशाल 5 फीट का गोलाकार में शिवलिंग स्थित है ।शिवलिंग को दूध से धोने के बाद शिव जी की प्रतिमा उभर जाती है । ऐसा लोगों का मानना है कि जब लंकेश रावण शिवलिंग को लंका ले जा रहे थे उसी समय में यहां भी रुके थे । लोगों का मानना है कि यहां एक ही रात में भगवान विश्वकर्मा 110 मंदिर और सैकड़ों मूर्तियां बनाए थे। यहां के खेतों में अभी भी हल जोताई के समय शिवलिंग छोटे-छोटे निकलती है। जहां हाल ही में एक बेशकीमती शिव लिंग का प्रतिमा खेत जुताई के समय निकला था जिसे ग्रामीणों ने पूजा अर्चना कर मंदिर में रख दिया है । मंदिर परिसर लगभग पांच एकड़ में फैला हुआ था लेकिन हो रहे लगातार अतिक्रमण के कारण मंदिर सीमट गई है। यहां पूर्व में 110 मंदिर थे लेकिन अभी शेष 2-3 मंदिर ही बचे हैं। यह स्थल का चर्चा शिव पुराण मे है। शिव पुराण के अनुसार यहां की चौहद्दी सटीक मिलती हैं। पूर्व में शिवपुरी गांव, पश्चिम में दर्शनिया नाला ,उत्तर में सकरी नदी और दक्षिण में महावर पहाड़ व पच पेड़वा झरना जो सटीक मिलती है।यहां पूरे सावन माह के साथ-साथ सावन के पूर्णिमा में सैकड़ों श्रद्धालु शिवलिंग का जल अभिषेक करते हैं । जिस तरह से सुल्तानगंज से जल उठा कर देवघर बाबा भोलेनाथ पर जल अर्पित किया जाता है उसी तरह से सकरी नदी मैशरवा घाट से जल उठाकर घोड़ सिमर बाबा भगवान शंकर के विशाल शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं ।जिससे मनोकामना पूर्ण होती है। पंडित रामाश्रय मिश्रा ने बताया कि इस मंदिर में लो जो भी मन्नते मांगते हैं उन लोगों का पूरा होता है। कुष्ठ रोग वाले लगातार डेढ़ महीने तक मंदिर में रहकर पूजा पाठ करते हैं उनका कुष्ठ रोग दूर हो जाता है। शादी विवाह को लेकर कई लोग मन्नते मांगने पहुंचते हैं। सावन के महीने में कुष्ठ रोग वाले लोग मंदिर में रहते हैं देवघर से जलाभिषेक कर लौट रहे श्रद्धालु बाबा के मंदिर में आकर माथा टेकते हैं। सावन के पूर्णिमा दिन हजारों की संख्या में ककोलत से जल उठा कर जलाभिषेक करते हैं। माना जाता है कि यहां का शिवलिंग इतना बड़ा है कि दूसरे मंदिरों में नहीं है।
यहां के मुर्तियों को भेजा गया है पुरातात्विक विभाग : कैलाश राम
जिला पर्यटन पदाधिकारी कैलाश राम ने कहा कि घोड़सिमर धाम के देवी देवताओं के मुर्तियों की जांच के लिए पुरातात्विक विभाग भेजा गया है। ताकि यह मुर्ति कितनी पुरानी है इसका आकलन किया जा सके। उन्होंने कहा कि यहां का संरक्षण के लिए कई कदम उठाये जा रहें हैं। मंदिर का सौदर्यीकरण बॉण्ड्रीवाल समेत अन्य कार्य कराया गया है। उन्होंने कहा कि आगे भी यहां अन्य जरूरी कार्य के लिए सार्थक कदम उठाया जायेगा।
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