मी लॉर्ड को 'डॉग माफिया' का हिस्सा बताने वाली महिला को बड़ी राहत, SC ने रोक दी सजा
यह विवाद तब शुरू हुआ जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोसाइटी को एक घरेलू सहायिका को एंट्री देने से रोकने के खिलाफ आदेश पारित किया। सहायिका पर आरोप है कि वह आवारा कुत्तों को खाना खिलाती थी।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एक महिला को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुए एक सप्ताह की जेल की सजा सुनाई गई थी। महिला ने एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर "डॉग माफिया" का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया था।
मामला नवी मुंबई की सीवुड्स एस्टेट हाउसिंग सोसाइटी की सांस्कृतिक निदेशक विनीता श्रीनंदन से जुड़ा है। श्रीनंदन ने जनवरी 2025 में 1,500 से अधिक निवासियों के बीच एक सर्कुलर वितरित किया था, जिसमें दावा किया गया था कि देश में एक "बड़ा डॉग माफिया" सक्रिय है, जिसके पास "हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के उन जजों की सूची है, जो आवारा कुत्तों को खाना खिलाने वालों के समान विचार रखते हैं।" सर्कुलर में यह भी आरोप लगाया गया था कि अदालतें आवारा कुत्तों को खाना खिलाने वालों का समर्थन करती हैं और मानव जीवन की कीमत को नजरअंदाज करती हैं।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोसाइटी को एक घरेलू सहायिका को एंट्री देने से रोकने के खिलाफ आदेश पारित किया। सहायिका पर आरोप है कि वह आवारा कुत्तों को खाना खिलाती थी। इसके जवाब में विनीता श्रीनंदन ने यह सर्कुलर जारी किया, जिसे हाई कोर्ट ने आपराधिक अवमानना माना। कोर्ट ने कहा कि यह सर्कुलर "न्यायपालिका को बदनाम करने वाला और अपमानजनक" है, जो जनता के बीच न्यायिक विश्वास को कमजोर करता है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने विनीता को सात दिन की साधारण जेल और 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया था, लेकिन सजा को 10 दिनों के लिए निलंबित कर दिया था ताकि वह सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकें। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "हम ऐसी मामलों में सामान्य रूप से दी जाने वाली माफी या घड़ियाली आंसुओं को स्वीकार नहीं करेंगे।"
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा जहां जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने सुनवाई की। विनीता श्रीनंदन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दामा शेषाद्रि नायडू और अन्य वकीलों ने पैरवी की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई तक सजा को निलंबित कर दिया।