बोले मेरठ : हॉकी खिलाड़ियों को मिलें संसाधन तो बनें मेजर ध्यानचंद जैसे जादूगर
Meerut News - मेरठ में हॉकी खेल का इतिहास समृद्ध रहा है, लेकिन आज के समय में खिलाड़ियों को सुविधाओं का अभाव है। हॉकी के लिए आवश्यक उपकरण महंगे हैं और आर्थिक समस्याओं के कारण कई प्रतिभाएं दब जाती हैं। सरकार को चाहिए...
मेरठ। जिसके दम पर मेजर ध्यानचंद के जादूगर कहलाए आज वही हॉकी दम तोड़ती नजर आ रही है। मेरठ में एक समय में हॉकी के दर्जनभर से ज्यादा मैदान हुआ करते थे, लेकिन अब ज्यादातर इसके मैदानों पर दूसरे खेलों ने कब्जा कर लिया है। सुविधाओं के आभाव में पिछले कुछ वर्षों में मेरठ से कोई बड़ा खिलाड़ी नहीं निकला है। हिन्दुस्तान बोले मेरठ टीम ने खिलाड़ियों की उन समस्याओं को समझने का प्रयास किया, जिनका सामना हमारे होनहार हॉकी खिलाड़ी करते हैं, और साथ ही उन समाधान की ओर भी एक नजर डालेंगे जो इस खेल को उसका खोया सम्मान वापस दिला सकते हैं।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का मेरठ से खासा नाता रहा है। 1915 में मेरठ के पंडित सोहनलाल शर्मा ने हॉकी निर्माण शुरू किया था, जिनकी हॉकी से मेजर ध्यानचंद ने दनादन गोल दागे और देश को एक स्वर्णिम दौर तक लेकर गए। वहीं आज हॉकी खिलाड़ियों की बात करें तो ज्यादातर हॉकी खिलाड़ी ग्रामीण या मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं। जिन्हें न तो अच्छी क्वालिटी का स्टिक मिलता है, न शूज, और न ही संतुलित आहार। ट्रेनिंग के लिए आधुनिक सुविधाओं का अभाव उनकी मेहनत को पीछे ढकेलता है। मेरठ में एसडी सदर इंटर कॉलेज, एनएएस इंटर कॉलेज और कैलाश प्रकाश स्टेडियम में हॉकी के खिलाड़ियों की अच्छी खासी संख्या है। पूरे मेरठ में करीब तीन सौ हॉकी खिलाड़ी हैं, इनमें बड़ी संख्या में खिलाड़ी नेशनल खेल चुके हैं। सबसे बड़ी समस्या ये है, कि इस खेल के अधिकतर खिलाड़ी ऐसे हैं, जिनके पास सुविधाओं का अभाव है। हिन्दुस्तान बोले मेरठ की टीम ने इन हॉकी खिलाड़ियों और उनके कोच से संवाद कर उनके मन की बात जानी। इस खेल में उनकी जरूरतें और समस्याओं के समाधान पर बातचीत की। बेहतर संसाधन मिलें तो निखरे प्रतिभा एसडी सदर इंटर कॉलेज में हॉकी कोच जोगेंद्र सिंह का कहते हैं, कि मेरठ में हॉकी खेल बड़ा केंद्र रहा है, मेजर ध्यानचंद यहां की बनी हॉकी से ही खेलते थे, उन्हें आज भी हॉकी का जादूगर कहा जाता है। मेरठ में पहले 13-14 हॉकी के क्लब हुआ करते थे और 12 आर्मी के हॉकी सेंटर होते थे। आज हालात ये हैं कि यह खेल लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण खिलाड़ियों के पास बेहतर संसाधन नहीं होना है। अगर खिलाड़ियों को अच्छे संसाधन मिलें तो नई प्रतिभाएं निखारी जा सकती हैं। हॉकी में ज्यादातर गरीब और मध्यमवर्गीय बच्चे होते हैं, जिनके पास हॉकी खरीदने तक पैसे नहीं होते। एक हॉकी की कीमत आज दो हजार से लेकर पंद्रह हजार रुपये तक है। पहले लकड़ी की हॉकी सस्ती आती थी, लेकिन अब खिलाड़ी फाइबर की हॉकी प्रयोग करते हैं, जिसकी कीमत अच्छी खासी होती है। वहीं हॉकी बॉल की बात करें तो उसकी कीमत भी काफी है। खिलाड़ियों के पास जूते तक नहीं, कैसें लाएं मेडल एनएएस कॉलेज में हॉकी खिलाड़ी डिंपल, तुलसी, करिश्मा, शिवानी, नीरू और नेशनल हॉकी अंपायर प्रभा ठाकुर का कहना है, कि यहां हॉकी खिलाड़ी प्रैक्टिस करते हैं, इनमें सबसे ज्यादा लड़कियां हैं, वो भी ज्यादातर गरीब परिवार से हैं। यहां घास के मैदान पर खेलकर एस्ट्रो टर्फ पर खेलने वाले खिलाड़ियों को हराया है, नेशनल तक में अपनी प्रतिभा दिखाई है। लेकिन सबसे बड़ी विड़ंबना यह है, कि यहां प्रैक्टिस करने वाली हॉकी खिलाड़ियों के पास हॉकी और जूते खरीदने तक के लिए पैसे नहीं होते। किसी तरह जुगाड़ कर भी लिया जाए तो फिर बाहर जानेके लिए पैसे नहीं होते। और जब टर्फ पर प्रैक्टिस की बात आती है तो वहां जूते बेहतर क्वालिटी के चाहिएं, क्योंकि पंद्रह दिन में ही वहां जूते खराब हो जाते हैं। ऐसे में कई खिलाड़ी बीच में ही खेल छोड़ देते हैं। आर्थिक दिक्कतों में दबकर रह जाती है प्रतिभा एनएएस कॉलेज में हॉकी कोच प्रदीप चिन्योटी खिलाड़ियों को लेकर दर्द बयां करते हुए कहते हैं, कि इस खेल में सबसे ज्यादा गरीब बच्चे खेलने आते हैं। इनके लिए सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है, सरकार करोड़ों रुपये का खेल बजट पास करती है, तो वह पैसा इन गरीब खिलाड़ियों तक क्यों नहीं पहुंचता। सरकार इन बच्चों को अपनी तरफ से जूता ही दे दे। आज हॉकी की कीमत कम से कम दो हजार रुपये से शुरू होती है। सरकार की तरफ से कोई बजट नहीं मिलने के कारण पचास फीसदी टूर्नामेंट खत्म हो गए। बहुत सारे खिलाड़ियों की प्रतिभा आर्थिक कारणों से दबकर रह जाती है। हाल में बच्चों को बड़ा टूर्नामेंट खेलने के लिए नासिक जाना था, एक तरफ का किराया ही काफी था तो उसमें बड़ी मुश्किलें उठानी पड़ीं। एनएएस की हॉकी खिलाड़ी ही हैं जो ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी खेलती हैं। मुझे जो थोड़ा बहुत मिलता है, उसमें से ही बच्चों के लिए बॉल खरीदकर दे देता हूं। लेकिन शासन प्रशासन स्तर पर इन खिलाड़ियों के लिए कुछ होना चाहिए। खिलाड़ियों पर पूरे इक्वीपमेंट ही नहीं होते हॉकी खिलाड़ी और कोच का कहना है कि इस खेल के लिए सबसे पहली चीज हॉकी होती है, जिसको खरीदने के लिए खिलाड़ी को दस बार सोचना पड़ता है, फिर उसे जूते चाहिएं, इसके बाद पैड और अन्य सामान की जरूरत पड़ती है। प्रभा ठाकुर बताती हैं कि खिलाड़ियों के पास पूरे इक्वीपमेंट ही नहीं होते। इनको खरीदने के लिए काफी पैसों की जरूरत होती है, जिसके लिए गरीब मां-बाप कोशिश नहीं कर पाते। सरकार हॉकी की तरफ ध्यान दे तो यह खेल भी क्रिकेट की तरह चमक सकता है। इस खेल से बहुत से खिलाड़ियों ने नौकरी भी पाई है, वे लोग भी इस ओर अगर थोड़ा ध्यान दें तो यह खेल बहुत आगे निकल सकता है। खिलाड़ियों की जरूरतों को देखते हुए सरकार कुछ इंतजाम करे, ताकि खिलाड़ियों को उनकी मंजिल मिल सके। ट्रेन में लटककर कर जाते हैं खिलाड़ी हॉकी खिलाड़ी गुनगुन, शाक्षी, शिवा भारद्वाज, इशिका, अपूर्वा, आफरीन, अदनान खान और चिराग का कहना है कि सरकार की तरफ से खिलाड़ियों को आने जाने के लिए किराया तक नहीं मिलता। हॉकी के खिलाड़ी हमेशा जनरल डिब्बे में ही सफर करके जाते हैं। जहां बैठने तक की सीट नहीं मिलती है, और जब भीड़ होती है तो कई बार लटककर भी जाना पड़ता है। किसी तरह टूर्नामेंट तक पहुंचते हैं और खेल का प्रदर्शन करते हैं। हम लोग ज्यादातर घास के मैदान पर ही प्रैक्टिस करते हैं, क्योंकि टर्फ पर खेलने से जूते ज्यादा घिसते हैं। खिलाड़ियों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वो बार-बार जूते खरीदें। जिनके मां-बाप थोड़ा पैसे वाले होते हैं वो इन जरूरतों को वहन कर लेते हैं। लेकिन इस खेल को अमीर लोगों के बच्चे नही अपनाते हैं। राष्ट्रीय खेल का दर्जा होने के बाद भी दयनीय हॉकी कोच जोगेंद्र सिंह कहते हैं, कि अगर सरकार से सहारा मिल जाए तो हालात सुधर सकते हैं। संसाधनों की कमी के कारण सैकड़ों खिलाड़ी यह खेल छोड़ देते हैं। आज के समय में खेले जाने वाले हॉकी खेल में गेद की कीमत हजारों में हो गई है, इसके साथ हॉकी की कीमत बहुत ज्यादा है, फिर आने-जाने का खर्चा, किट का खर्चा, हॉकी खिलाड़ी को आगे नहीं बढ़ने देता। सरकार इस खेल के खिलाड़ियों के लिए रिजर्वेशन की व्यवस्था करे, खिलाड़ियों को खाने पीने की सुविधाएं प्रदान करें तो मेजर ध्यानचंद के समय का सुनहरा दौर फिर लौट सकता है। नहीं तो इसके हालात राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद दयनीय ही रहेंगे। मेरठ से निकले हैं नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ी हॉकी कोच जोगेंद्र सिंह बताते हैं कि कभी मेरठ हॉकी खेल का गढ़ माना जाता था। यहां से इंटरनेशनल खिलाड़ी एनपी सिंह और प्रवीण शर्मा निकले हैं। जिनको नौकरी भी इसके ही दम पर मिली थी। वहीं इंटरनेशनल खिलाड़ी प्रमोद बाटला भी मेरठ से ही ताल्लुक रखते हैं। एसडी सदर में आते-जाते रहते हैं, साथ ही खिलाड़ियों को प्रेरणा देते हैं। मेरठ से ओलंपिक खेलने वाले रोमियो जेंट्स, सरदार एमपी सिंह भी बड़े खिलाड़ियों में रहे हैं। लेकिन आज इस खेल की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। गोल्ड मेडल दिलाने वाला यह खेल आज खुद के इतिहास को खोज रहा है। स्कॉलरशिप, ट्रेनिंग किट और पोषण योजना हो शुरू खिलाड़ियों और कोच का कहना है कि सरकारी और निजी संस्थानों को हॉकी खिलाड़ियों के लिए विशेष स्कॉलरशिप, ट्रेनिंग किट और पोषण योजनाएं शुरू करनी चाहिए। गांव-गांव में हॉकी अकादमी बनाकर युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जहां एक ओर क्रिकेट खिलाड़ियों को भरपूर पहचान मिलती है, वहीं हॉकी खिलाड़ी गुमनाम ही रह जाते हैं, चाहे वे देश के लिए कितनी भी बड़ी उपलब्धि क्यों न हासिल करें। ऐसे में खेल मंत्रालय को हॉकी खिलाड़ियों के लिए पहल करनी चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में हॉकी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाने चाहिएं। समस्या - खिलाड़ियों के लिए सुविधाओं का बहुत ज्यादा अभाव - खेल के इक्वीपमेंट महंगे होने के कारण होती हैं दिक्कतें - बाहर जाने के लिए खिलाड़ियों को नहीं मिलता किराया - सरकार की तरफ से हॉकी खिलाड़ियों को स्कॉलरशिप नहीं - एस्ट्रो टर्फ पर खेलने के लिए खिलाड़ियों पर नहीं होते संसाधन सुझाव - हॉकी खिलाड़ियों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों - हॉकी के इक्वीपमेंट सरकार कराए उपलब्ध तो बने बात - दूसरे प्रदेशों और नेशनल के लिए आने जाने की हो व्यवस्था - हॉकी खिलाड़ियों की प्रतिभा के अनुसार सरकार संसाधन दे - एस्ट्रो टर्फ पर खिलाड़ियों को खेलने के लिए मिलें संसाधन इन्होंने कहा हॉकी के खिलाड़ियों को पूरे इक्वीपमेंट नहीं मिल पाते हैं, ऐसे में खिलाड़ी कई बार चोटिल भी जो जाती है, सुविधाएं मिलें तो खिलाड़ी बेहतर कर सकता है। - डिंपल यहां ज्यादातर खिलाड़ी गरीब और मध्यमवर्ग से हैं, खिलाड़ियों के पास हॉकी तक खरीदने तक को पैसे नहीं होते, किसी तरह जुगाड़ करके हॉकी खरीदते हैं। - तुलसी दूसरे खेलों की तरह से इस खेल को भी सरकार आगे बढ़ाए, ताकि खिलाड़ी देश के लिए मेडल ला सकें और खेल भी अपनी बेहतर स्थिति में शामिल हो। - करिश्मा बच्चों के पास खेलने के लिए हॉकी के साथ जूतों की भी जरूरत होती है, अगर एस्ट्रो टर्फ पर खेलने लगें तो कुछ ही दिन में जूते फट जाते हैं। - शिवानी हॉकी खिलाड़ी अपने दम पर ही आगे बढ़ते हैं, अगर सरकार की तरफ से कुछ मिलने लगे और जरूरतें पूरी हो जाएं तो नेशनल तक दावेदारी पक्की है। - नीरू हॉकी के साथ बॉल भी बहुत महंगी होती है, साथ ही ड्रेस और अन्य इक्वीपमेंट खिलाड़ी को चाहिए होते हैं, इनके लिए काफी खर्चा होता है। - गुनगुन यहां तो खिलाड़ी जी-जान लगाकर प्रैक्टिस कर लेता है, लेकिन जब उसे कहीं पार्टिसिपेट करने के लिए जाना होता है तो किराए की दिक्कतें बहुत आती हैं। - शाक्षी खिलाड़ियों को खेलने जाने के लिए रिजर्वेशन की व्यवस्था नहीं होती, इसलिए उनको जनरल कोच में ही सफर करना पड़ता है, जिसमें दिक्कतें आती हैं। - शिवा भारद्वाज कई बार खिलाड़ी को प्रतियोगिता में समय पर पहुंचना होता है, बस किसी तरह जनरल डिब्बे में लटककर पहुंचते हैं, दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। - इशिका खिलाड़ियों को सरकार की तरफ से स्कॉलरशिप की व्यवस्था हो तो उनको थोड़ा सहारा लग जाए, जिससे वे हॉकी या जूते सहित अन्य सामान खरीद सकें। - अपूर्वा हॉकी के खेल में ज्यादातर गरीब बच्चे आते हैं, सभी को बुनियादी जरूरतें होती हैं, बहुत सारे बच्चे तो सुविधाएं नहीं मिलने के कारण खेल छोड़ देते हैं। - आफरीन आजकल हॉकी के रेट बहुत ज्यादा हैं, खिलाड़ी को सबसे पहले हॉकी ही खरीदनी पड़ती है, इसके बाद बॉल, पैड और अन्य सामान खरीदना पड़ता है। - अदनान खान मेरठ से बहुत सारे खिलाड़ी नेशनल खेल चुके हैं, जिनको नौकरी भी मिल जाती है, लेकिन इस खेल में शुरूआती दौर काफी दिक्कतों वाला होता है। - चिराग घास के मैदान पर हॉकी खेलना आसान होता है, लेकिन जब हम एस्ट्रो टर्फ पर जाकर खेलते हैं तो वहां खेल अलग होता है, वहां के लिए हॉकी भी दूसरी होती है। - कुणाल खिलाड़ी को डाइट की जरूरत होती है, लेकिन यहां खिलाड़ियों के पास आर्थिक समस्याएं ज्यादा रहती हैं, इसलिए वह डाइट की बजाय हॉकी पर ध्यान देता है। - मनु कुमार इस खेल में ज्यादातर वे बच्चे होते हैं जिनके मां-बाप की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, अगर हॉकी खिलाड़ी को भी संसाधन मिल जाएं तो मेडल पक्का है। - तनिष्क हॉकी खिलाड़ियों को कोई सुविधा नहीं मिलती, बहुत सारे बच्चे तो हॉकी भी नहीं खरीद पाते, किसी तरह जुगाड़ करके ले लेते हैं, तो फिर आगे दिक्कतें होती हैं। - आयुष्मान इस खेल से गोल्ड मेडल तक खिलाड़ी लाए हैं, इसके बावजूद सरकार की तरफ से इनके लिए कुछ व्यवस्था नहीं है, आने-जाने के लिए किराया ही माफ कर दें। - प्रदीप कुमार चिन्योटी, हॉकी कोच, एनएएस कॉलेज आजकल हॉकी की कीमत भी बहुत ज्यादा हो गई है, हॉकी खिलाड़ियों को रिजर्वेशन और अन्य सुविधाएं मिलें तो बहुत राहत मिल जाएगी, किराए में पूरी छूट मिले। - जोगेंद्र सिंह, हॉकी कोच, एसडी सदर कॉलेज खिलाड़ियों के लिए हॉकी के साथ उनकी डाइट भी जरूरी है, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण खिलाड़ी पिछड़ जाते हैं, बहुत सारे खिलाड़ी नेशनल खेल चुके हैं। - प्रभा ठाकुर, नेशनल अंपायर, हॉकी टीम ---------------------------
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