Rural Workers Struggles 5 Months Without Wages Under MGNREGA बोले रायबरेली: मनरेगा श्रमिक, Raebareli Hindi News - Hindustan
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बोले रायबरेली: मनरेगा श्रमिक

Raebareli News - पहले काम और अब मानदेय के लिए लगा रहे चक्कर रायबरेली, संवाददाता। जिले

Newswrap हिन्दुस्तान, रायबरेलीWed, 16 April 2025 05:20 PM
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बोले रायबरेली: मनरेगा श्रमिक

पहले काम और अब मानदेय के लिए लगा रहे चक्कर रायबरेली, संवाददाता। जिले में मनरेगा श्रमिकों को करीब पांच महीनों से मजदूरी न मिलने से इनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। करीब पांच महीने से मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है, जिससे उन्हें जरूरी खर्चों में कठिनाई हो रही है। गांव में भी विकास के कार्य लगभग बंद पड़े हैं। अब काम के बाद श्रमिक अधिकारियों के यहां चक्कर लगा कर थक गए हैं। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मजदूरी न मिलने से हताश हुए इन मजदूरों का अब मनरेगा से मोह भंग हो गया है। ये लोग यह काम छोड़ कर दूसरे काम पर जा रहे हैं। रोजगार सेवकों को मजदूर ढूंढें नहीं मिल रहे हैं। मजदूरी न मिलने से अब मनरेगा श्रमिकों का रुझान दूसरे कार्यों की ओर हो रहा है। इस समय अधिकांश मजदूर गेहूं की फसल की कटाई करने में लगे हुए हैं।

गांव में मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए बनी योजना बेदम नजर आ रही हैं।

जिले के मनरेगा श्रमिकों को करीब पांच महीने से उनके पारिश्रमिक का भुगतान नहीं हुआ है ।अपने भुगतान के लिए यह श्रमिक भटक रहे हैं। पहले काम मिलने में दिक्कत आती है। जब काम मिलता तो फिर पैसे के लिए भटकना पड़ता है। मनरेगा मजदूर गांव के विकास की एक मजबूत कड़ी हैं। मजदूरी नहीं मिलने से काम बंद कर दिया है। ऐसे में विकास कार्य भी ठप हैं।

गांवों में विकास कार्यों को गति देने में इनका अहम योगदान है। गांव के विकास को गति देने में सबसे अहम भूमिका मनरेगा के श्रमिकों की है। लेकिन इन मनरेगा श्रमिकों को करीब पांच माह से इनकी मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है इससे यह लोग परेशान हैं और गांव से पलायन की कोशिश में हैं।इन लोगों की समस्याओं को लेकर आपके अपने हिन्दुस्तान अखबार ने इन यह मनरेगा श्रमिकों से बात की तो इनका दर्द फूट पड़ा।इन श्रमिकों का कहना है कि वह ग्रामीण विकास को अपने पसीने से सींचते आ रहे हैं। यह लोग सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत कर गांव को विकास की ओर ले जाते हैं। गांव में चाहे चकरोड़ हो या सीसी रोड कोई विकास का कार्य यह लोग करते नजर आते हैं।इसी तरह तमाम विकास के काम मनरेगा श्रमिकों के कंधों पर हैं। जिले में मनरेगा श्रमिकों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। पांच महीने से मनरेगा श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। श्रमिकों की 26 करोड़ से अधिक की मजदूरी बकाया है। रोजाना बैंक जाकर पासबुक चेक करते हैं। जरूरी खर्च रुक गए हैं। बच्चों की फीस जमा नहीं हो पा रही है। बीमारी का उपचार नहीं करा पा रहे हैं। मजदूरी के भुगतान के लिए अफसरों से गुहार लगा रहे हैं। नतीजा कुछ नहीं निकला।मनरेगा श्रमिकों ने अपनी परेशानियों को साझा करते हुए अपने दर्द को बयां किया।

रायबरेली जिले में 301203 मनरेगा जॉब कार्ड धारक हैं। इन जॉब कार्ड पर 434922 श्रमिक पंजीकृत हैं। इसमें भी 197146 श्रमिक सक्रिय हैं। मनरेगा के तहत जॉब कार्डधारक मजूदरों को एक साल में सौ दिन में रोजगार देने का प्रावधान है। पिछले वित्तीय वर्ष में मनरेगा श्रमिकों ने लाखों दिन अपना पसीना जला कर गांव के विकास में योगदान दिया है।इससे इन गांवों में चाहे चकमार्ग हो या तालाब का निर्माण सबमें इनकी भागीदारी रही है। इन लोगों ने गांव की कच्ची रोड बनाई। तालाबों की खुदाई करके उनको जल संचयन के योग्य बनाया । अमृत सरोवर तैयार किए। इस तरह गांव में जल संरक्षण करने में इन लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । इन लोगों की मेहनत से ही बहुत सी सरकारी जमीनों और खेतों को समतलीकरण का काम किया गया। जिस तरह की उबड़ खाबड़ जमीनों को श्रमिकों ने मेहनत करके समतल कर दिया उसमें अब खेती भी हो रही है इसका फायदा बहुत से किसानों को मिल चुका है। पौधरोपण में भी मनरेगा श्रमिकों खास भूमिका निभाई है। जिले में करीब 26 लाख पौधे लगाने के लिए मनरेगा श्रमिकों ने गड्ढे खोदे और उनमें पौधे लगाए। पौधों की देखभाल भी की। जिले में हरियााली बढाने का काम भी इन लोगों ने किया।गांव के आंगनबाड़ी सेंटरों के निर्माण में श्रमिकों ने खूब पसीना बहाया। सेंटरों की बिल्डिंग बनाकर तैयार कर दीं। गांव की पक्की सड़कों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सर्दी-गर्मी और बरसात हर मौसम में मनरेगा श्रमिकों ने हिम्मत के साथ विकास के परियोजनाओं को आगे बढ़ाया। निराश्रित गोवंश के संरक्षण में सबसे आगे रहे। मनरेगा के बजट से गोशालाओं को निर्माण कराया। गोशालाओं में गोवंश को शिफ्ट किया गया है। सरकारी मशीनरी की उदासीनता ने इन मनरेगा श्रमिकों को हौसला तोड़ दिया है। विकास की धारा से जुड़कर परिवार का पालन पोषण करने का इनका सपना टूटने लगा है। इसका कारण है इनके मेहनताने का समय से भुगतान न होना।जिले के मनरेगा श्रमिकों को पिछले साल 12 दिसंबर से मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। बकाया मजदूरी का आंकड़ा 26 करोड़ के पार पहुंच गया है। हाल ये है कि कुछ मजदूरों की 50 दिन से अधिक की मजदूरी का भुगतान रुका हुआ है। मजदूरों की बुनियादी जरूरतें तक पूरी नहीं हो पा रहीं। बच्चों की फीस तक रुक गई है। इलाज नहीं करा पा रहे हैं। अपनी मजदूरी के लिए ये मजदूर पास के जन सुविधा केंद्र से लेकर ब्लॉक और जिला मुख्यालय तक अधिकारियों के ऑफिसों के चक्कर लगा रहे हैं। इन मनरेगा मजदूरों की सुनवाई नहीं हो रही। मजदूरो को समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करें क्या मजदूरी करना गुनाह है जो इनको इतना दौड़ाया जा रहा है।अफसरों से मजदूरी के विषय में पूछने पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता है ।अधिकारी बजट आने पर मजदूरी का ऑनलाइन भुगतान करने का भरोसा दे रहे हैं। परेशान मजदूरों ने मनरेगा से किनारा कर लिया है। जिले में मनरेगा के ज्यादातर प्रोजेक्ट ठप हैं। दुखी मजदूर अन्य कामों की ओर रुख करने को मजबूर हो गए हैं।रायबरेली शहर और दूसरे शहरों में भी जाकर यह लोग रोजगार करने को मजबूर हो रहे हैं। इन दिनों कुछ मजदूर तो गेहूं की कटाई कर रहे हैं। वहीं कुछ ने दूसरा काम ढूंढना शुरू कर दिया है। जिसको जो काम समझ आ रहा है वह उसको कर रहा है।यही हाल रहा तो सरकार की महत्वपूर्ण मनरेगा योजना दम तोड़ने में देर नहीं लगाएगी।

विकास में मनरेगा श्रमिकों का योगदान, फिर भी परेशान

रायबरेली, संवाददाता। गांव के हर विकास में मनरेगा श्रमिकों का योगदान है। चाहे वह सड़क निर्माण हो या आंगनबाड़ी उस फिर पौधरोपण सबमें इन मजदूरों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।जिले में निराश्रित गोवंश के सरंक्षण में मनरेगा श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्रामीण इलाकों में मनरेगा से कई गोशालाओं का निर्माण कराया गया है। पशु शेड से लेकर गोशालाओं की बाउंड्री तक के निर्माण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। गोशालाओं में गोवंश को तो शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन अभी तक इन मनरेगा श्रमिकों की मजूदरी का भुगतान नहीं हो सका। मजदूर ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव,रोजगार सेवकों के पास चक्कर काट रहे हैं। अभी तक इसका कोई हल नहीं निकला है। यहां तक कि

कोरोना महामारी के दौरान जब सभी कार्यों में विराम लग गया लोग गांव की ओर लौट आए तो मनरेगा ने ही सबसे अधिक रोजगार दिया था। दूसरे शहरों से घर लौटने वाले श्रमिकों का तुरंत जॉब कार्ड बनाकर रोजगार मुहैया कराया गया। एक सप्ताह के अंदर मजदूरी का भुगतान किया गया। बेरोजगार हुए श्रमिकों को मनरेगा ने तंगी का एहसास नहीं होने दिया। लोगों को सहारा देने वाली मनरेगा योजना अब लड़खड़ा रही है। हर साल मानव दिवस घट रहे हैं ।

करीब पांच महीने से मजदूरी का भुगतान न होने से मनरेगा मजदूर नाराज हैं। मनरेगा के तहत चल रहे विकास कार्यों में रोजगार करने को तैयार नहीं हैं। जिले में मनरेगा के ज्यादातर काम ठप पड़े हैं। श्रमिक रोजगार की तलाश में गांव से लेकर आसपास के शहरों में आ रहे हैं। कुछ श्रमिक परिवार का पालन पोषण करने के लिए इन दिनों गेहूं की फसल की कटाई कर रहे हैं।

मजदूरी का भुगतान न होने से ज्यादातर मनरेगा मजदूर साहूकारों से उधार ले चुके हैं।मजदूरी का भुगतान रुका तो इन मजदूरों को परिवार पालना मुश्किल हो गया। मजदूरों के सामने साहूकारों से कर्ज लेने के लिए दूसरा रास्ता नहीं बचा है। जिन मजदूरों ने साहूकारों से कर्ज लिया है। उन्हें कर्ज लौटाने की चिंता हो रही है। अभी तक मजदूरी न मिलना इन मजदूरों की परेशानी का सबब बना हुआ है।

गांव में थम गए मनरेगा के विकास कार्य

रायबरेली। पांच महीने से मजदूरी का भुगतान न होने से मनरेगा मजदूर खफा हैं। मनरेगा के तहत चल रहे विकास कार्यों में रोजगार करने को तैयार नहीं हैं। इससे जिले में मनरेगा के ज्यादातर काम ठप पड़े हैं। श्रमिक रोजगार की तलाश में श्हार से लेकर आस-पास के जिलों में पलायन रहे हैं। कुछ श्रमिक परिवार का पालन पोषण करने के लिए इन दिनों गेहूं की फसल की कटाई कर रहे हैं। मजदूरी का भुगतान रुका तो मजदूरों को परिवार पालना मुश्किल हो गया। मजदूरों के सामने साहूकारों से कर्ज लेने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचा है। कर्ज लौटाने की चिंता मजदूरों को परेशान कर रही है। वहीं जिम्मेदार अधिकारी मनरेगा मजदूरों के पारिश्रमिक के भुगतान को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। यही नहीं मनरेगा श्रमिकों की दिक्कतों के निस्तारण के लिए कोई हेल्प डेस्क भी नहीं है, जहां वह अपने मन की पीड़ा और समस्या को उजागर कर सकें। श्रमिकों का कहना है कि उनके पारिश्रमिक के भुगतान के निर्धारित समय का कोई समय निर्धारित नहीं किया गया है। मनरेगा श्रमिकों के पारिश्रमिक का एक सप्ताह के अंदर भुगतान की व्यवस्था का पूरी तरह से पालन होगा चाहिए

मनरेगा योजना के कार्यान्वयन में सुधार करने की है आवश्यकता

रायबरेली। मनरेगा योजना देरी से भुगतान, काम का अभाव और खराब गुणवत्ता वाला काम शामिल हैं। मनरेगा श्रमिकों को अक्सर अपनी मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं मिलता है। कई बार उन्हें लम्बे समय तक इंतजार करना पड़ता है, जिससे उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मनरेगा योजना में श्रमिकों को रोजगार की गारंटी दी जाती है, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि उन्हें पर्याप्त काम नहीं मिल पाता है। खासकर शुष्क मौसम में, जब कृषि कार्य कम हो जाते हैं, तो मनरेगा श्रमिकों के लिए काम की कमी रहती है। कुछ मामलों में मनरेगा के तहत किए गए काम की गुणवत्ता खराब होती है। इससे मनरेगा योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने में बाधा आती है। अगर इनमें सुधार हो तो लोगों को राहत मिले।

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शिकायतें

-मनरेगा मजदूरों के पारिश्रमिक के भुगतान को लेकर अधिकारी गंभीरता नहीं दिखाते हैं। वह परेशान रहते हैं।

-मनरेगा श्रमिकों की दिक्कतों के निस्तारण के लिए कोई हेल्प डेस्क नहीं है। वह शिकायत कहां करें।

-श्रमिकों के पारिश्रमिक के भुगतान के निर्धारित समय का अनुपालन नहीं होता है। हमेशा लापरवाही होती है।

-पारिश्रमिक लेट होने पर अधिकारी ब्याज का भुगतान भी नहीं करते हैं। इसका प्रावधान होना चाहिए।

-श्रमिकों को मनरेगा की वर्किंग साइट पर पीने के पानी तक व्यवस्था नहीं होती है। गर्मी में अधिक दिक्कत होती है।

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सुझाव

-मनरेगा श्रमिकों के पारिश्रमिक का एक सप्ताह के अंदर भुगतान की व्यवस्था का पालन होना चाहिए।

-पारिश्रमिक का भुगतान लेट होने पर मजदूरों को ब्याज भी मिलना चाहिए। ताकि उनकी भरपाई हो सके।

-श्रमिकों की समस्याओं के निस्तारण के लिए ब्लॉक स्तर पर हेल्प डेस्क बनाई जानी चाहिए।

-मनरेगा की वर्किंग साइट पर मजदूरों के पीने के पानी की व्यवस्था की जाए ताकि वह परेशान न हों।

-मनरेगा श्रमिकों की समस्याओं के निस्तारण के लिए अधिकारी गंभीरता दिखाएं। प्राथमिकता पर काम हो।

श्रमिक बोले

पांच महीनों से हम श्रमिकों की मजूदरी का भुगतान नहीं हो सका। इसके लिए ग्राम प्रधान और ग्राम्य विकास विभाग के अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। मनरेगा मजदूरों के पारिश्रमिक के भुगतान को लेकर अधिकारी गंभीरता नहीं दिखाते हैं।

दीपा

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मनरेगा श्रमिकों की दिक्कतों के निस्तारण के लिए कोई हेल्प डेस्क नही है। वहीं श्रमिकों के पारिश्रमिक के भुगतान के निर्धारित समय का अनुपालन भी नहीं हो रहा है। यदि पारिश्रमिक देने में देरी हो रही है तो अधिकारी ब्याज का भुगतान भी नहीं करते।

सुमित्रा

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श्रमिकों को मनरेगा की वर्किंग साइट पर पीने के पानी तक व्यवस्था नहीं की जा रही है। गांव से लेकर जिला मुख्यालय सरकारी मशीनरी श्रमिकों को सम्मान नहीं देती। इससे हम लोगों को काफी ठेस पहुंच रही है।

सुनीता

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कोरोना महामारी के दौरान मनरेगा ने सबसे अधिक रोजगार दिया था। दूसरे शहरों से घर लौटने वाले श्रमिकों का तुरंत जॉब कार्ड बनाकर रोजगार मुहैया कराया गया। एक सप्ताह के अंदर मजदूरी का भुगतान किया गया।

संगीता

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जब मजदूरी नहीं मिलती तो काम करने का क्या फायदा। हमारी मजदूरी का भुगतान ब्याज सहित होना चाहिए। घर के पास काम मिल जाता है इस लिए मनरेगा में काम करते हैं। पांच महीने से मजदूरी नहीं मिल रही। कर्ज लेकर काम चला रहे हैं।

किसनावती

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हम लोगों को मजदूरी तुरंत मिलनी चाहिए। मनरेगा में एक तो मजदूरी कम है। बस गांव में काम मिल जाता है यही लालच रहता है। अब पांच महीने से मजदूरी नहीं मिली। उधार लेकर खर्च पूरे कर रहे हैं। शासन-प्रशासन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा।

केशवती

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परिवार पालने के लिए मजदूरी करते हैं। मजदूरी नहीं मिली तो परिवार कैसे पालें। घर के खर्च के लिए रुपयों की जरूरत होती है। बच्चों की पढाई से लेकर कपड़े और दवाई के खर्च होते हैं। सब बंद पड़े हैं।

सुमित्री

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हम लोग मजदूरी के लिए लगातार चक्कर काट रहे हैं। कहीं सुनवाई नहीं हो रही। अधिकारी हमारी बात नहीं सुन रहे। ऐसे काम करने का फायदा। हम कर्ज लेकर घर चला रहे हैं। गांव के बाहर काम करते तो ऐसी स्थिति न होती।

चंद्रावती

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प्राइवेट काम करने वालों को काम खत्म होते ही मजदूरी मिल जाती है। मनरेगा में कई महीने से मजदूरी नहीं मिली। किसी को भी मजूदरों की चिंता नहीं है, जबकि तालाबों की खोदाई से लेकर चकरोड डालने तक का काम हमने मनरेगा में किया।

सुनीता

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हम लोगों ने प्रधान और रोजगार सेवक के कहने पर मनरेगा में लगातार काम किया। पांच महीने से मजदूरी का भुगतान नहीं किया। घर में तंगी आ गई। जरूरी खर्च तक नहीं हो पा रहे। ऐसी मजदूरी करने से क्या फायदा।

रामबाबू

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पांच महीने से हमें मजदूरी नहीं मिली है। परिवार के सब खर्च बंद हो गए हैं। बच्चों की फीस तक जमा नहीं कर पाएं हैं। ब्याज पर कर्ज लेकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। मनरेगा में काम करने का कोई फायदा नहीं है।

प्रेमशंकर

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काम करने के बाद समय पर मजदूरी नहीं मिलती। पांच महीने से मजदूरी रुकी हुई है। बच्चों के कपड़े तक नहीं दिला पा रहे हैं। इलाज तक रुक गया है। वहीं मजदूरी का भुगतान किए बगैर ही हम पर मनरेगा में काम करने का दवाब बनाया जा रहा है।

रामसागर

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अपनी मजदूरी लेने के लिए रोजाना चक्कर काटने पड़ रहे हैं। घर की स्थिति खराब हो गई है। अब हम मनरेगा में काम नहीं करेंगे। गरीब मजदूर परिवार पालने के लिए मजदूरी करता है। उसके पास जमा पूंजी नहीं होती है।

कृष्ण कुमार

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हम रोज कुंआ खोदकर पानी पीने वाले लोग हैं। मनरेगा में लंबे समय से काम कर हैं। पांच महीने से हमें मजदूरी नहीं दी गई है। बच्चों की पढाई से लेकर सब जरूरी खर्च बंद हो गए हैं। किसी तरह कर्ज लेकर परिवार पाल रहे हैं।

कौशल

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नंबर गेम

301203 जिले में जॉब कार्ड धारक हैं

434922 जिले में श्रमिक हैं

197146 श्रमिक सक्रिय रूप से कर रहें है काम

26 करोड़ रुपए के करीब भुगतान बाकी हैनंबर गेम

301203 जिले में जॉब कार्ड धारक हैं

434922 जिले में श्रमिक हैं

197146 श्रमिक सक्रिय रूप से कर रहें है काम

26 करोड़ रुपए के करीब भुगतान बाकी है

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बोले अधिकारी

मनरेगा श्रमिक कभी भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण किया जाएगा। जो भी शिकायत रहती है उनका भौतिक सत्यापन किया जाता है। पूरा प्रयास रहता है कि श्रमिकों को त्वरित न्याय मिले।

सारिका शुक्ला, मनरेगा लोकपाल

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