कश्मीर को कहा गले की नस, हिंदुओं के खिलाफ भी उकसाया; पाक आर्मी चीफ के इशारे पर लाल हुई घाटी
- खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, लश्कर-ए-तैयबा का शीर्ष कमांडर सैफुल्ला कसूरी उर्फ खालिद इस साजिश का मुख्य सूत्रधार हो सकता है।

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के हालिया भड़काऊ बयानों को भारत में एक बड़े आतंकी हमले का संभावित ट्रिगर माना जा रहा है। खुफिया सूत्रों के अनुसार, मुनीर द्वारा कश्मीर को पाकिस्तान की "जुगुलर वेन" (गले की नस) कहने वाले बयान ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हमला करने के लिए उकसाया। यह हमला अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस की भारत यात्रा के दौरान हुआ, जिससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है।
हालांकि भारतीय एजेंसियां अभी तक किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंची हैं, लेकिन कई खुफिया अधिकारियों का मानना है कि जनरल मुनीर के उत्तेजक भाषण ने लश्कर के संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) को इस "हमले" को अंजाम देने के लिए प्रेरित किया। TRF ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है।
मुनीर का बयान और उसका संदर्भ
पाकिस्तान के इस्लामाबाद में आयोजित विदेशी पाकिस्तानियों के एक सम्मेलन में जनरल मुनीर ने कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का पुराना रुख दोहराया और 'दो-राष्ट्र सिद्धांत' का बचाव किया। उन्होंने कहा था, "कश्मीर हमारी जुगुलर वेन था, है और रहेगा। हम अपने कश्मीरी भाइयों को भारत के कब्जे के खिलाफ उनके संघर्ष में अकेला नहीं छोड़ेंगे।" इसके साथ ही, उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच "असंगत मतभेद" पर जोर देते हुए पाकिस्तानियों से अपनी अगली पीढ़ी को इस विचारधारा को सौंपने का आह्वान किया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इस बयान को एक "डॉग व्हिसल" के रूप में देखा, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में कट्टरपंथी तत्वों को उकसाना और भारत में अशांति फैलाना था। यह बयान भारत में वक्फ अधिनियम में बदलाव के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के साथ भी मेल खाता है।
खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, लश्कर-ए-तैयबा का शीर्ष कमांडर सैफुल्ला कसूरी उर्फ खालिद इस साजिश का मुख्य सूत्रधार हो सकता है। इसके साथ ही रावलकोट में सक्रिय दो अन्य लश्कर कमांडरों की भूमिका की भी जांच की जा रही है, जिनमें से एक का नाम अबू मूसा बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 18 अप्रैल को अबू मूसा ने रावलकोट में एक आयोजन किया था, जिसमें उसने खुलेआम कहा, "जिहाद जारी रहेगा, बंदूकें गरजेंगी और कश्मीर में सिर कलम होते रहेंगे। भारत कश्मीर की जनसांख्यिकी को बदलना चाहता है, इसलिए गैर-स्थानीय लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट दे रहा है।" हमले के दौरान दर्दनाक पहलू यह रहा कि कई पीड़ितों को 'कलमा' पढ़ने के लिए मजबूर किया गया और जो नहीं पढ़ पाए, उन्हें गोली मार दी गई।
हमले की योजना और तैयारी
प्रारंभिक जांच के अनुसार, लगभग छह आतंकवादियों ने, कुछ स्थानीय सहायकों की मदद से, इस हमले को अंजाम दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, ये आतंकी हमले से कुछ दिन पहले इलाके में आ चुके थे, रेकी की थी, और मौके की तलाश में थे। अप्रैल की शुरुआत (1-7 तारीख के बीच) में कुछ होटलों की रेकी किए जाने की खुफिया सूचना पहले से ही मौजूद थी।
एक वरिष्ठ सूत्र ने कहा, "यह कहना गलत होगा कि खुफिया एजेंसियों से चूक हुई। इनपुट्स थे, लेकिन हमलावर मौके की तलाश में थे और उन्होंने सही समय देखकर वार किया।" यह हमला जहां एक ओर भारत में तीव्र आक्रोश का कारण बना है, वहीं यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तानी भूमिका और नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।