सरकार के साथ 1.7 अरब डॉलर के गैस विवाद में HC के फैसले के खिलाफ SC पहुंची RIL
सिंगापुर के मध्यस्थ लॉरेंस वू की अध्यक्षता वाले पैनल ने सरकार की मांग को खारिज कर दिया। इसके बाद सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने फरवरी 2024 में मध्यस्थता के फैसले को रद्द करते हुए सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया।

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और उसके विदेशी पार्टनर्स ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील की है, जिसने सरकार के ₹1.7 अरब डॉलर (करीब 14,000 करोड़ रुपये) के दावे वाले मामले में उनके पक्ष में दिए गए मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) के फैसले को रद्द कर दिया था। यह विवाद आंध्र तट के कृष्णा-गोदावरी (KG) बेसिन में गैस निकालने के आरोपों से जुड़ा है।
फरवरी में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि आरआईएल और उसके साथी कंपनियों (ब्रिटेन की बीपी और कनाडा की निको) ने सरकारी कंपनी ओएनजीसी के ब्लॉक से पलायन करके गैस को अपने केजी-डी6 फील्ड से निकालकर "अनुचित लाभ" कमाया था। इसलिए सरकार का यह दावा वैध है।
2013 का मामला
मामला 2013 का है, जब ओएनजीसी ने दावा किया था कि आरआईएल के केजी-डी6 फील्ड के पास उसके दो ब्लॉक (आईजी और KG-DWN-98/2) हैं, जहां से गैस रिलायंस के ब्लॉक में चली गई। चूंकि रिलायंस ने अपना फील्ड पहले ही चालू कर दिया था, जबकि ओएनजीसी के ब्लॉक अभी विकास के चरण में थे। इसलिए ओएनजीसी ने आरोप लगाया कि रिलायंस उसकी गैस निकाल रहा है।
इसके बाद ऑयल मिनीस्ट्री ने रिलायंस और उसके पार्टनर्स से करीब 1.6 अरब डॉलर (गैस निकालने की लागत + ब्याज) और 175 मिलियन डॉलर (अतिरिक्त लाभ) की वसूली की मांग की थी। लेकिन, सिंगापुर के मध्यस्थ लॉरेंस वू की अध्यक्षता वाले पैनल ने सरकार की इस मांग को खारिज कर दिया। इसके बाद सरकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने फरवरी 2024 में मध्यस्थता के फैसले को रद्द करते हुए सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया।
क्या था फैसला
फरवरी के फैसले में न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और सौरभ बनर्जी की डिवीजन बेंच ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता ट्रिब्यूनल के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें सरकार के दावे को खारिज किया गया था। साथ ही, उन्होंने न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंबानी के पुराने फैसले को भी पलट दिया, जिसमें उन्होंने रिलायंस के पक्ष में मध्यस्थता के फैसले को सही ठहराया था।
पीठ ने कहा, "हम 9 मई 2023 के न्यायाधीश (सिंगल जज) के आदेश और 2018 के मध्यस्थता ट्रिब्यूनल के फैसले को रद्द करते हैं, क्योंकि ये कानूनी नियमों के खिलाफ हैं। साथ ही, सभी पक्षों को अपने-अपने खर्चे स्वयं वहन करने होंगे।"
इससे पहले, न्यायमूर्ति भंबानी ने कहा था कि "मध्यस्थता ट्रिब्यूनल का निर्णय तर्कसंगत है और उसमें दखल देने का कोई कारण नहीं है। ट्रिब्यूनल ने जो राय दी है, वह एक संभावित राय है, इसलिए उसे बरकरार रखा जाना चाहिए।" लेकिन, अब डिवीजन बेंच ने इस फैसले को पलट दिया है, जिसके बाद रिलायंस ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।