Couples seeking divorce within year of marriage have to show exceptional hardship or depravity says Orissa High Court शादी के एक साल के अंदर चाहिए तलाक, तो साबित कीजिए असाधारण दुराचार; HC ने क्यों कहा ऐसा?, India Hindi News - Hindustan
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शादी के एक साल के अंदर चाहिए तलाक, तो साबित कीजिए असाधारण दुराचार; HC ने क्यों कहा ऐसा?

कोर्ट ने आगे जोर देकर कहा कि हालांकि, धारा 14(1) असाधारण मामलों में इस प्रतिबंध में छूट की अनुमति देती है, जहां याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि उसने असाधारण कठिनाइयां झेली हैं।

Pramod Praveen हिन्दुस्तान टाइम्स, देवब्रत मोहंती, भुवनेश्वरThu, 10 April 2025 06:52 PM
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शादी के एक साल के अंदर चाहिए तलाक, तो साबित कीजिए असाधारण दुराचार; HC ने क्यों कहा ऐसा?

उड़ीसा हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि अगर किसी नव विवाहित दम्पति को विवाह के एक साल के अंदर विवाह-विच्छेद करना है यानी तलाक लेना है तो उन्हें असाधारण दुराचार या असाधारण कठिनाइयों की बात साबित करनी होगी। हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि इसका प्रमाण देते हुए आवेदनकर्ता को अलग अर्जी लगानी होगी। एक फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 एक गैर-बाधा खंड (non-obstante clause) से शुरू होती है, जिसका अर्थ है कि यह अधिनियम के अन्य सभी प्रावधानों को रद्द कर देती है।

जस्टिस बीपी राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दास की डबल बेंच ने कहा, "हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 स्पष्ट रूप से न केवल अदालत को विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक याचिका पर विचार करने से रोकता है, बल्कि किसी भी पक्ष को इस तरह की याचिका दायर करने से भी रोकता है।" कोर्ट ने आगे जोर देकर कहा कि हालांकि, धारा 14(1) असाधारण मामलों में इस प्रतिबंध में छूट की अनुमति देती है, जहां याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि उसने असाधारण कठिनाइयां झेली हैं, या दूसरे पक्ष की तरफ से असाधारण दुराचरण या भ्रष्ट व्यवहार किया गया है।

एक साल के अंदर तलाक की क्या शर्त?

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामले में अदालतें पीड़ित व्यक्ति को विवाह के एक वर्ष के भीतर याचिका दायर करने की अनुमति देने का विवेक रखता है, बशर्ते कि याचिका को समय से पहले तलाक के लिए आवेदन करने की अनुमति मांगने वाले एक अलग आवेदन के माध्यम से पुष्ट किया जाए।"

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, 13 मई, 2020 को एक पुरुष और एक महिला ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था और इस नव दम्पति ने अपना वैवाहिक जीवन शुरू किया था लेकिन बहुत ही कम समय के अंतराल में उनके बीच वैवाहिक कलह शुरू हो गई, जिससे दोनों पक्षों की ओर से गंभीर विवाद और आरोप लगे। स्थिति इतनी खराब हो गई कि महिला ने शादी के एक महीने बाद ही 24 जून, 2020 को अपना ससुराल छोड़ दिया और फिर कभी वापस नहीं लौटी, जिसके बाद पति ने 7 जुलाई, 2020 को भद्रक जिले के फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की।

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विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक के लिए याचिका प्रस्तुत करने और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 14 के तहत वैधानिक प्रतिबंध के बावजूद, पारिवारिक न्यायालय ने मामले को आगे बढ़ाया । फिर दलीलों, साक्ष्यों और तर्कों का विश्लेषण करने के बाद, न्यायालय ने पति की तलाक की प्रार्थना को खारिज कर दिया क्योंकि वह पत्नी की ओर से क्रूरता या परित्याग को साबित करने में विफल रहा। फैमिली कोर्ट ने सुलह की वास्तविक कोशिश किए बिना जल्दबाजी में विवाह को भंग करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए पति को फटकार भी लगाई।

फैमिली कोर्ट का क्या था आदेश

इसके बाद पति ने 2023 में उड़ीसा हाई कोर्ट में इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की। ​​उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि पारिवारिक न्यायालय ने याचिका की स्थिरता के बारे में कोई विशेष जिक्र क्यों नहीं किया, जबकि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 14 विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक याचिका प्रस्तुत करने पर कानूनी रोक लगाती है। न तो पति ने प्रतिबंध हटाने के लिए अलग से आवेदन दायर किया और न ही पत्नी ने मामले में अंतिम दलीलें होने तक ऐसी याचिका की स्थिरता के बारे में कोई आपत्ति जताई।

हालांकि, उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि चूंकि दंपति लगभग पांच वर्षों से अलग-अलग रह रहे हैं, इसलिए मामले को पूरी तरह से प्रक्रियात्मक आधार पर खारिज करने के बजाय नए सिरे से निर्णय के लिए पारिवारिक न्यायालय को वापस भेजना उचित होगा। इसलिए न्यायालय ने वैधानिक प्रतिबंध को माफ कर दिया, लेकिन स्पष्ट किया कि धारा 14(1) के तहत एक वर्ष का प्रतिबंध वर्तमान मामले के विशिष्ट तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हटा दिया गया है इसलिए, इसे सामान्य मिसाल के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए और न ही इसे प्रावधान के पीछे विधायी मंशा के कमजोर पड़ने के रूप में समझा जाना चाहिए।