टाटा के इस शेयर में भूचाल, ₹125 पर आ गया भाव, लगातार गिर रहा दाम
- Tata group stock: टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा स्टील के शेयर लगातार फोकस में हैं। कंपनी के शेयर आज बुधवार को 4% तक गिरकर 125.35 रुपये के इंट्रा डे लो पर आ गए। ट्रंप टैरिफ के ऐलान के बाद से टाटा स्टील के शेयरों में लगातार गिरावट देखी जा रही है।

Tata Steel Stock: टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा स्टील के शेयर लगातार फोकस में हैं। कंपनी के शेयर आज बुधवार को 4% तक गिरकर 125.35 रुपये के इंट्रा डे लो पर आ गए। ट्रंप टैरिफ के ऐलान के बाद से टाटा स्टील के शेयरों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। ब्लूमबर्ग के अनुसार, बुधवार को कंपनी के शेयरों की बड़ी मात्रा में अदला-बदली हुई है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार को बाजार खुलते ही टाटा समूह की कंपनी के करीब 2.09 मिलियन शेयरों का कारोबार हुआ। कारोबार किए गए प्रति शेयर एवरेज वैल्यू उपलब्ध नहीं था। पिछले पांच दिन में यह शेयर 18% तक टूट गया।
शेयरों के हाल
इस साल शेयर में 8 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि बेंचमार्क निफ्टी 50 में 5.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। टाटा स्टील का कुल मार्केट कैप ₹1.59 ट्रिलियन है। इधर, Q4FY25 में भारत में इसका प्रोडक्शन 5.51 मिलियन टन रहा, जो Q4FY24 के अंत में 5.40 मिलियन टन से मामूली रूप से अधिक है। हालांकि, क्रमिक आधार पर, घरेलू प्रोडक्शन की मात्रा Q3FY25 में देखे गए 5.69 मिलियन टन से कम हो गई। स्टील का प्रोडक्शन साल-दर-साल आधार पर 5 प्रतिशत बढ़कर 21.8 मिलियन टन हो गया, जो कि कलिंगनगर में भारत के सबसे बड़े ब्लास्ट फर्नेस के चालू होने और नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड में अधिक इस्पात उत्पादन के कारण हुआ है। वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में, कच्चे इस्पात का उत्पादन 5.51 मिलियन टन था, जो कि तिमाही-दर-तिमाही आधार पर कम था, क्योंकि जमशेदपुर में 'जी' ब्लास्ट फर्नेस में रीलाइनिंग का काम चल रहा था।"
क्या है डिटेल
टाटा स्टील नीदरलैंड कारोबार परिवर्तन योजना के तहत मैनेजमेंट और सहायक कार्यों में लगभग 1,600 नौकरियों में कटौती करेगा जिसका उद्देश्य दक्षता में सुधार करना और ग्रीन स्टील भविष्य की तैयारी करना है। स्टील कंपनी ने औपचारिक रूप से अपने सेंट्रल वर्किंग काउंसिल के साथ कंसल्टेंट शुरू कर दिया है और प्रस्तावित रीस्ट्रक्चर के बारे में ट्रेड यूनियनों को सूचित कर दिया है। रीस्ट्रक्चर ऐसे समय में हुआ है जब कंपनी यूरोप भर में कमजोर मांग, भू-राजनीतिक व्यवधानों और ऊर्जा की उच्च लागतों से जूझ रही है, जिसने लाभप्रदता को नुकसान पहुंचाया है।